Wednesday, January 19, 2011

शुभारंभ और आध्यात्म

नारियल फोडना और दीपप्रज्वलन, ये विधियां वास्तुशुद्धिकी यानी उद्‌घाटनकी महत्त्वपूर्ण विधियां हैं । 'उद्' का अर्थ है प्रकट करना । देवता तरंगों को प्रकट करना अथवा कार्यस्थल पर उन्हें स्थान ग्रहण करने हेतु आह्वान कर - प्रार्थना कर कार्य आरंभ करना यही है उद्‌घाटन करना । हिंदू धर्म में प्रत्येक कृति आध्यात्म शास्त्र आधारित है । किसी भी समारोह अथवा कार्य को पूर्ण करने के लिए देवताओं का आशीर्वाद उनकी अनुकम्पा आवश्यक मानी गई है । शास्त्रीय पद्धति अनुसार कार्य का शुभारंभ करने से दैविक तरंगों का कार्यस्थल पर आगमन होता है - सुरक्षा कवच का निर्माण होता है । इससे वहां अनिष्ट की आशंका नहीं रहती है । इसलिए उद्‌घाटन विधिवत्, अर्थात् अध्यात्म शास्त्र पर आधारित विधि अनुसार ही करना ही श्रेयस्कर माना जाता है । किसी भी  व्यासपीठ के कार्यक्रमों का उद्‌घाटन: परिसंवाद, साहित्य सम्मेलन, संगीत महोत्सव इत्यादि का उद्‌घाटन दीप प्रज्वलनसे किया जाता है । व्यासपीठ की स्थापना से पूर्व नारियल फोडें और उद्‌घाटन के समय दीप प्रज्वलित करें । नारियल फोडने के पीछे प्रमुख उद्देश्य है, कार्यस्थल की शुद्धि । व्यासपीठ ज्ञानदानके कार्य से संबंधित है, अर्थात् वह ज्ञानपीठ है । इसलिए वहां दीपक का विशेष महत्त्व है ।
व्यवसायिक प्रतिष्ठान इत्यादि का उद्‌घाटन दुकान, प्रतिष्ठान इत्यादि अधिकांशत: व्यावहारिक कर्मसे संबंधित होते हैं । इसलिए उनके उद्‌घाटन अंतर्गत दीप प्रज्वलन की आवश्यकता नहीं होती । इसलिए केवल नारियल फोडें । उद्‌घाटन के शुभ अवसर पर यदि कोई संत या माहत्मा की उपस्थिती हो तो यह अतिउत्तम स्थिति मानी जाती है क्योंकि संतों के अस्तित्व मात्र से ब्रह्मांड से आवश्यक देवता की सूक्ष्मतर तरंगें कार्यस्थल की ओर आकृष्ट व कार्यरत होती हैं । इससे वातावरण चैतन्यमय व शुद्ध बनता है और कार्यस्थल के चारों ओर सुरक्षा कवच की निर्मिति होती है व जीवों की सूक्ष्मदेह की शुद्धि में सहायता मिलती है ।