Saturday, January 15, 2011

माघ मास का "सकट चौथ"

माघ मास का  "सकट चौथ"
प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी यूं तो गणेश चतुर्थी कहलाती है तथा धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्रियां उस दिन व्रत एवम श्रीगणेश पूजन करती हैं। परंतु जहां तक  माघमास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का प्रश्न है, सभी महिलाएं इस व्रत को करती हैं। लोक प्रचलित भाषा में इसे सकट चौथ कहा जाता है। वैसे वक्रतुण्डी चतुर्थी , माघी चौथ अथवा तिलकुट चौथ इसी के अन्य नाम हैं। इस दिन संकट हरण श्रीगणेश जी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है। यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला माना जाता है।

इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत करती हैं। एक पटरे पर मिट्टी की डली को गणेशजी के रूप में रखकर उनकी पूजा की जाती है और कथा सुनने के बाद लोटे में भरा जल चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोला जाता है। रात्रि को चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही महिलाएं भोजन करती है। सकट चौथ के दिन तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूटकर तिलकुटा अर्थात तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं-कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है। उसकी पूजा करके घर का कोई बच्चा उसकी गर्दन काटता है, फिर सबको प्रसाद दिया जाता है।

तिलकुटे से ही गणेशजी का पूजन किया जाता है तथा इसका ही बायना निकालते हैं और तिलकुट को भोजन के साथ खाते भी हैं। जिस घर में लड़के की शादी या लड़का हुआ हो, उस वर्ष सकट चौथ को सवा किलो तिलों को सवा किलो शक्कर या गुड़ के साथ कूटकर इसके तेरह लड्डू बनाए जाते हैं। इन लड्डूओं को बहू बायने के रूप में सास को देती है। कहीं-कहीं इस दिन व्रत रहने के बाद सायंकाल चंद्रमा को दूध का अर्ध्य देकर पूजा की जाती है। गौरी-गणेश की स्थापना कर उनका पूजन तथा वर्षभर उन्हें घर में रखा जाता है। तिल, ईख, गंजी, भांटा, अमरूद, गुड़, घी से चंद्रमा गणेश का भोग लगाया जाता है। यह नैवेद्य रात भर डलिया से ढककर रख दिया जाता है, जिसे 'पहार' कहते हैं। पुत्रवती माताएं पुत्र तथा पति की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं। उस ढके हुए 'पहार' को पुत्र ही खोलता है तथा उसे भाई-बंधुओं में बांटा जाता है।
उत्तर भारतीय लोग  लकड़ी के एक पाटे पर श्री गणेश , संकठा माँ , माँ अन्न्पूर्णा , लक्ष्मी जी सहित अन्य देवी-देवताओं का चन्दन से चित्र बना कर पूजन करते हैं , सुहाग की सामग्री , गुड़ से बने विभिन्न प्रकार के लड्डुओं का भोग अर्पित  करते हैं ।  तिल का प्रतीकात्मक  बकरा बना कर  पुजन करते हैं । यहाँ यह पूजा गोघुली बेला में की जाती है।