Sunday, January 16, 2011

सांसारिक दुखों की भी निवृत्ति होती है प्रदोष व्रत रखने से




वैसे प्रदोष व्रत सप्ताह के किसी भी दिन पड़ सकते हैं। लेकिन, सोमवार मंगलवार और शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत बहुत अधिक प्रभावकारी कहे गए हैं। आमतौर पर द्वाद्वशी और त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष तिथि कहते हैं। इन्हीं तिथियों को व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत हर महीने दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन पड़ता है। इन तिथियों को अगर सोमवार या मंगलवार पड़ जाए, तो उन्हें सोम प्रदोष व्रत या भौम प्रदोष व्रत भी कहते हैं। इसी श्रृंखला में शनि प्रदोष व्रत भी विशेष ग्राह्य और पूज्य माने जाते हैं । ऐसी मान्यता है कि अनेक जप, तप और नियम संयम के बावजूद अगर गृहस्थ जीवन में संकट, क्लेश आर्थिक विषमताएं पारिवारिक विद्वेष संतानहीनता या संतान की उपलब्धि के बाद भी नाना प्रकार के कष्ट विघ्न बाधाएं, रोजी-रोटी सहित सांसारिक जीवन विभीषिकाएं खत्म नहीं हो रही हैं, तो उस श्रद्धालु के लिए प्रतिमाह में पड़ने वाले प्रदोष व्रत रखना हितकर होता है। 
प्रदोष व्रत उन लोगों के लिए भी मनोकामनापूरक व्रत है, जिन्हें चन्द्रमा ग्रह से काफी पीड़ित होना पड़ रहा है। साथ ही चन्द्रमा ग्रह के अनेक उपायों में साल भर में प्रदोष व्रतों को उपवास रखना, लोहा, तिल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, अरबी, कंबल, जूता और कोयला आदि दान करना हितकर होता है। चाहे गुरूवार हो या कोई अन्य वार, अगर प्रदोष व्रत हो, तो इसके लिए श्रद्धा पूर्वक व्रत रखकर उपरोक्त दान करेंगे तो आपके लिए शनि का प्रकोप काफी हद तक कम हो जाएगा और रोग-व्याधि, दरिद्रता, घर की अशांति, नौकरी या व्यापार में परेशानी आदि का निवारण हो जाएगा।
शनि या मंगल प्रदोष व्रत के दिन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर, भैरव मंदिर अथवा शिव मंदिर में पूजा करना भी लाभप्रद होता है। प्रदोष व्रत का दूसरा महत्व पुत्रकामना हेतु अथवा संतान के शुभ हेतु रखने में बृहस्पतिवार का दिन विशेष महत्वपूर्ण होता है। इस दिन मीठे पकवान और फल आदि गाय के बछड़े को देने से संतानहीन दंपत्तियों के लिए भी मनोकामना पूरक होता है। लेकिन, इसके लिए लगातार 16 प्रदोष व्रत करने जरूरी होते हैं। किसी भी प्रकार की संतान बाधा में शनि प्रदोष व्रत भी सबसे उत्तम मनोकामना पूरक उपाय है।
व्रत के दिन पति-पत्नी द्वारा प्रातः स्नान के उपरांत शिव, पार्वती और गणेशजी की संयुक्त आराधना के बाद शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग मे जल चढ़ाना, पीपल पर भी जल चढ़ाकर सारे दिन निर्जल रहना होगा। सायंकाल के समय लोहे की कढ़ाही में उड़द की दाल और मोटे चावल तथा तिल आदि मिलाकर खिचड़ी खानी होगी। खिचड़ी का एक चैथाई भाग काले कुत्ते या गाय को भी देना हितकर होगा।
प्रदोष व्रत रखने से सांसारिक दुखों की भी निवृत्ति होती है। यह आवश्यक नहीं है कि हम महज चंद्रमा की दशा या संतानहीनता के दुख को टालने के लिए इस व्रत को रखें। बल्कि यह व्रत सुख संपदा युक्त जीवन शैली के अलावा हमें यश, कीर्ति, ख्याति और वैभव देने में समर्थ होता है। विशेष रूप से श्रावण भाद्रपद, कार्तिक और माघ मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत आज के दैहिक और भौतिक कष्टों को निवारण करने में परम सहायक होते हैं।