Friday, December 31, 2010

शुभ कामनाएं

सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
सर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
और ...
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद्‌ दुःखभाग्भवेत्‌॥
सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।

Saturday, December 25, 2010

मंत्र शक्ति से लाभ पाएं




।। लक्ष्मी मन्त्र ।।


ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।
।। स्वास्थ्य प्राप्ति मन्त्र ।।
अच्युतानन्द गोविन्द
नामोच्चारण भेषजात ।
नश्यन्ति सकला रोगाः
सत्यंसत्यं वदाम्यहम् ।।
।। सफ़लता प्राप्ति मन्त्र ।।
कृष्ण कृष्ण महायोगिन्
भक्तानाम भयंकर
गोविन्द परमानन्द सर्व मे वश्यमानय ।।
।। सम्पत्ति प्राप्ति मन्त्र ।।
आयुर्देहि धनं देहि विद्यां देहि महेश्वरि ।
समस्तमखिलां देहि देहि मे परमेश्वरि ।।
।। दुख विनाशक मन्त्र ।।
1. ॐ अनन्ताय नमः ।
2. ॐ गोविन्दाय नमः ।
।। निर्विघ्न निद्रा मन्त्र ।।
हे पद्मनाभं सुरेशं ।
हे पद्मनाभं सुरेशं ।
।। मुकदमें में विजय का मन्त्र ।।
हे चक्रधर !
हे चक्रपाणि !!
हे चक्रायुधधारी !!!
।। ग्रह पीड़ा-नक्षत्र दोष दूर करने का मन्त्र ।।
नारायणं सर्वकालं क्षुत प्रस्खलनादिषु ।
ग्रह नक्षत्र पीडाषु देव बाधाषु सर्वतः ।।
।। सन्तान सुख मन्त्र ।।
हे जगन्नाथ ! हे जगदीश !!
हे जगत् पति !! हे जगदाधार !!
।। भय से मुक्ति मन्त्र ।।
हृषिकेश गोविन्द हरे मुरारी !
हे ! हृषिकेश गोविन्द हरे मुरारी !!
।। आपदाओं से त्राण पाने का मन्त्र ।।
हे वासुदेव !
हे नृसिंह !
हे आपादा उद्धारक !
।। श्री राम के जप मन्त्र ।।
1. ॐ राम ॐ राम ॐ राम ।
2. ह्रीं राम ह्रीं राम ।
3. श्रीं राम श्रीं राम ।
4. क्लीं राम क्लीं राम ।
5. फ़ट् राम फ़ट् ।
6. रामाय नमः ।
7. श्री रामचन्द्राय नमः ।
8. श्री राम शरणं मम् ।
9. ॐ रामाय हुँ फ़ट् स्वाहा ।
10. श्री राम जय राम जय जय राम ।
11. राम राम राम राम रामाय राम ।
।। स्नान मन्त्र ।।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ।।
।। सूर्य अर्घ्य मन्त्र ।।
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते ।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।
।। आसन व शरीर शुद्धि मन्त्र ।।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतो5पि वा ।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
।। चरणामृत मन्त्र ।।
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् ।
विष्णोः पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
।। चन्द्र अर्घ्य मन्त्र ।।
क्षीरोदार्णवसम्भूत अत्रिगोत्रसमुद् भव ।
गृहाणार्ध्यं शशांकेदं रोहिण्य सहितो मम ।।
।। सूर्य दर्शन मन्त्र ।।
कनकवर्णमहातेजं रत्नमालाविभूषितम् ।
प्रातः काले रवि दर्शनं सर्व पाप विमोचनम् ।।
।। तिलक लगाने का मन्त्र ।।
केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।
।। माला जपते समय का मन्त्र ।।
अनिध्यं कुरु माले त्वं गृह् णामि दक्षिणे करें ।
जापकाले च सिद्धयर्थें प्रसीद मम सिद्धये ।।
।। शिखा बाँधने का मन्त्र ।।
चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।।
।। तुलसी स्तुति मन्त्र ।।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः ।
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये ।।
।। तुलसी तोड़ने का मन्त्र ।।
मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी ।
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमो5स्तुते ।।
पीपल मे जल देने का मन्त्र ।
कुलानामयुतं तेन तारितं नात्र संशयः।
यो5श्वत्थमूलमासिंचेत्तोयेन बहुना सदा ।।
।। पीपल पूजन ।।
अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वैश्वर्यदायिने ।
अनन्तशिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः ।।
।। शंख पूजन मन्त्र ।।
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करें ।
निर्मितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमो5स्तुते ।।
।। प्रदक्षिणा मन्त्र ।।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ।।
।। नवग्रह मन्त्र ।।
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहु केतवः, सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ।।
।। अन्नपूर्णा मन्त्र ।।
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्य भिक्षां देहि च पार्वति ।।
।। भोग लगाने का मन्त्र ।।
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।
गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।
।। अग्नि जिमाने का मन्त्र ।।
ॐ भूपतये स्वाहा, ॐ भुवनप, ॐ भुवनपतये स्वाहा ।
ॐ भूतानां पतये स्वाहा ।।
कहकर तीन आहूतियाँ बने हुए भोजन को डालें । या
।। ॐ नमो नारायणाय ।।
कहकर नमक रहित अन्न को अग्नि में डालें ।
।। भोजन से पूर्व बोलने का मन्त्र ।।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।
।। भोजन के बाद का मन्त्र ।।
अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः ।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः ।।
।। सायं दीप स्तुति मन्त्र ।।
सायं ज्योतिः परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं सन्ध्यादीप नमोऽस्तु ते ।।
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुखसम्पदाम् ।
मम बुद्धिप्रकाशं च दीपज्योतिर्नऽस्तु ते ।।
।। क्षमा प्रार्थना मन्त्र ।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
।। शयन का मन्त्र ।।
जले रक्षतु वाराहः स्थले रक्षतु वामनः ।
अटव्यां नारसिंहश्च सर्वतः पातु केशवः ।।
।। श्री गंगा जी की स्तुति ।।
गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ।।
।। वेद स्तुति ।।
नमः शम्भवे च मयोभवे च नमः शंकाराय च ।
मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ।।
।। काली स्तुति ।।
    काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी ।
      सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोस्तुते । ।
    

पीपल और शनि


शनिवार को पीपल पर जल व तेल चढाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा लगाना अति शुभ होता है। धर्मशास्त्रों में वर्णन है कि पीपल पूजा केवल शनिवार को ही करनी चाहिए। 
पुराणों में आई कथाओं के अनुसार ऎसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी से पूर्व उनकी बडी बहन, अलक्ष्मी (ज्येष्ठा या दरिद्रा) उत्पन्न हुई, तत्पश्चात् लक्ष्मीजी। लक्ष्मीजी ने श्रीविष्णु का वरण कर लिया। इससे ज्येष्ठा नाराज हो गई। तब श्रीविष्णु ने उन अलक्ष्मी को अपने प्रिय वृक्ष और वास स्थान पीपल के वृक्ष में रहने का ओदश दिया और कहा कि यहाँ तुम आराधना करो। मैं समय-समय पर तुमसे मिलने आता रहूँगा एवं लक्ष्मीजी ने भी कहा कि मैं प्रत्येक शनिवार तुमसे मिलने पीपल वृक्ष पर आया करूँगी। 
शनिवार को श्रीविष्णु और लक्ष्मीजी पीपल वृक्ष के तने में निवास करते हैं। इसलिए शनिवार को पीपल वृक्ष की पूजा, दीपदान, जल व तेल चढाने और परिक्रमा लगाने से पुण्य की प्राप्त होती है और लक्ष्मी नारायण भगवान व शनिदेव की प्रसन्नता होती है जिससे कष्ट कम होते हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती है। 

किस चौपाई से क्या लाभ और फल मिलेगा, जानिए


1पुत्र प्राप्ति के लियेप्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान ॥
2क्लेश निवारण के लियेहरन कठिन कलि कलुष कलेसू ।
महा मोह निसि दलन दिनेसू ॥
3महामारी से बचाव के लियेजय रघुबंस बनज बन भानू ।
गहन दनुज कुल दहन कृसानू ॥
4धन प्राप्ति के लियेजिमि सरिता सागर महुं जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं॥
तिमि सुख संपति बिनहि बोलाएं। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएं॥
5रोग शान्ति के लियेदैहिक दैविक भौतिक तापा।
राम राज नहीं काहुहि व्यापा॥
6मानसिक परेशानी दूर करने के लियेहनुमान अंगद रन गाजे।
हॉक सुनत रजनीचर भाजे॥
7अकाल मृत्यु निवारण के लियेनाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहि प्रान केहि बाट॥
8संपत्ति के लियेजे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख संपत्ति नाना विधि पावहिं॥
9सुख के लियेसुनहि विमुक्त बिरत अरु विषई।
लहहि भगति गति सम्पति नई॥
10विद्या के लियेगुरु गृह गए पढ़न रघुराई।
अलप काल विद्या सब आई॥
11मनोरथ के लियेभव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि॥
12मुकदमा जीतने के लियेपवन तनय बल पवन समाना।
बुधि बिवेक विग्यान निधाना॥
13विजय पाने के लियेकर सारंग साजि कटि भाथा।
अरि दल दलन चले रघुनाथा॥
14प्रेम बढाने के लियेसब नर करिहं परस्पर प्रीति।
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
15परीक्षा में सफल होने के लियेजेहि पर कृपा करिह जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भांती। जासु कृपा नहीं कृपा अघाती॥
16निंदा से बचने के लियेराम कृपा अवरेब सुधारी।
बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी॥
17भूत बाधा निवारण के लियेप्रनवऊं पवन कुमार खल बल पावक ग्यान घन।
जासु हृदय अगार बसहि राम सर चाप धर॥
18खोई हुई वस्तु पाने के लियेगई बहोर गरीब नेवाजू।
सरल सबल साहिब रघुराजू॥
19विवाह के लियेतब जनक पाई बसिष्ठ आयसु ब्याह साज संवारि कै।
मांडवी श्रुत कीरति उरमिला कुंअरि लई हंकारि कै॥
20यात्रा में सफलता के लियेप्रबिसि नगर कीजे सब काजा।
हृदय राखि कोसलपुर राजा॥
21विभिन्न कर्यों की सिद्धि के लियेमंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सो दसरथ अजिर बिहारि॥
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥
जड चेतन जग जीव जत, सकल राममय जानि।
बंदऊं सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥
सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहुं मुनिनाथ।
हानि लाभ जीवन मरन, जस अपजस विधि हाथ॥
मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुवीर।
अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु विषम भव भीर॥
सुनहि विमुक्त विरत अरु विषई। लहहि भगति गति संपति नई॥
सुर दुर्लभ सुख करि जग माही। अंतकाल रघुपति पुर जाहि ॥

Thursday, November 25, 2010

देवी - कवच




  प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टकम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

  उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।

देवी कवच का अर्थ
 प्रथम शैलपुत्री हैं, द्वितीय ब्रह्मचारिणी हैं तृतीय देवी का स्वरूप चन्द्रघण्टा है, कूष्माण्डा चौथास्वरूप है, पाँचवीं स्कन्दमाता हैं, छठवीं कात्यायनी हैं, सातवीं कालरात्री हैं और महागौरी आठवीं हैं, नवमीं सिद्धिदात्री हैं – इस प्रकार देवी के नव स्वरूप कहे गये हैं (प्रसिद्ध हैं) ।
हे विप्रवर! देवी का यह कवच अत्यन्त गुह्य तथा सभी भूतों का उपकारक है, हे महामुनि इसे सुनें ।
देवी के ये नाम महात्मा ब्रह्मा(वेद) के द्वारा वर्णित हैं।
जो विषम परिस्थिति में दुर्गम स्थल पर या भय या अधिक दुःख से त्रस्त(आर्त) होकर देवी की शरण में आते हैं 
उनका रण में या संकट में किसी प्रकार का (कुछ भी) अशुभ नहीं होता है
न ही उनकी च्युति(अपद) होती है और न ही उन्हें किसी प्रकार का शोक, दुःख, भय प्राप्त होता है।
देवी के अन्य नाम
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।
जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा तथा स्वधा इन ग्यारह नामों से जो देवी प्रसिद्ध हैं, उन्हें नमस्कार है

महामृत्युञ्जय-मन्त्र

ॐ त्र्यबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।उर्वारूकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। ॐ =   परमात्मा का नाम                                                                 
त्र्यंबकं = त्रि अंबकं = तीन नेत्रों वाले (भगवान शंकर) का
यजामहे = हम यजन(ध्यान, पूजन) करते हैं         
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् = जो सम्पूर्ण जगत का धारण, पोषण तथा संवर्धन करते हैं।
उर्वारूकमिव बन्धनात् = वे उर्वारूक के बन्धन से छूटने के समान(ककड़ी जिस प्रकार पक जाने पर बेल से स्वतः मुक्त हो जाती है॥
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् = मृत्यु से मोक्ष के लिये अमृत के द्वारा (वे हमारे समस्त कष्टों को हरें। )      हम तीन नेत्रों वाले (परम कृपालु) भगवान शंकर का यजन(ध्यान, पूजन) करते हैं। जिस प्रकार उर्वारूक (ककड़ी) पक जाने पर बेल से स्वतः मुक्त हो जाती है, उसे बन्धन से छूटने में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसी प्रकार हम भी संसार रूपी बेल (जिसमें दुःख-सुख रूपी फल लगते हैं, उस बेल) से (छूटने के लिये) कृपा-अमृत के द्वारा मृत्यु की अपेक्षा मोक्ष प्राप्त करें(समस्त दुःखों, कष्टों से छुटकारा पायें)।                                                                 

गायत्री मंत्र

                  ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं
           भर्गोदेवस्यधीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्                                                                                               
         = परम अक्षर परमात्मा                                       भूः प्रथम व्याह्वृति जिनसे सब (संसार उत्पन्न) है
        भुवः द्वितीय व्याह्वृति
        स्वः तृतीय व्याह्वृति
        तत् = उन
        सवितुः = सविता (सूर्य) देवता का
        वरेण्यं = वरण करें
        भर्गः = तेज
        देवस्य = देवता का
        धीमहि = ध्यान करें।
        धियः = धी (धारणा,बुद्धि) को
        यः = जोवे
        नः = हमारी (बुद्धि को)
        प्रचोदयात् = प्रेरित करें 

Wednesday, November 24, 2010

Tuesday, November 23, 2010

द्वादस ज्योतिर्लिंग

पुराणों  में इस बात का उल्लेख है कि भगवान देवाधिदेव शंकर " शिवजी"  जहां-जहां खुद प्रगट  (स्वंभू)  हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को  अनादिकाल से ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।
सौराष्ट्रे सोमनाथ च श्री शैले मल्लिकार्जुनम, उज्जयिन्या महाकाल, मोंधारे परमेश्वरम, केदार हिमवत्पृष्ठे, डाकिन्या भीमशंकरम वारासास्था च विश्वेश, त्र्यम्बक गौतमी तीरे, वैद्यनाथ चिता भूमौनागेश द्वारका वने। सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवाल्ये। द्वादशेतानिनामानि प्रातरुत्थायय: पठेत, सर्व पापैर्विनिर्मुक्त: सर्व सिद्धि फल लभत्।

01 सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

सौराष्ट्र में सोमनाथ :- काठियावाड के प्रभाष क्षेत्र में विराजमान हैं। दक्ष के श्राप से चंद्रमा को क्षय रोग से मुक्त करने के लिए यहां प्रगट हुए थे।

02 मल्लिकार्जुन श्री शैल ज्योतिर्लिंग

श्री शैल :- नारदजी के भ्रमित करने से नाराज, अपने पुत्र कार्तिकेय को, मनाने के लिए, दक्षिण भारत में मल्लिकार्जुन के रूप में प्रगट हुए थे।

03 महाकाल ज्योतिर्लिंग

महाकालेश्वर :- दूषण नामक दैत्य द्वारा अवन्तीनगर (उज्जैन) पर आक्रमण करने पर काल रूप में भगवान शिव ने सारे दैत्यों का नाश कर जहां से उजागर हुए थे उसी गड्ढे में अपना स्थान बना लिया।

04 ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

ओंकारेश्वर :- मध्य प्रदेश के मांन्धाता पर्वत पर नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश हो, वरदान देने हेतु, यहां प्रगट हुए थे।

05 केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

केदारेश्वर :- हिमालय के केदार नामक स्थान पर विराजमान हैं। यह स्थान हरिद्वार से 150मील दूर है। विष्णुजी के अवतार नर-नारायण की प्रार्थना पर यहां स्थान ग्रहण किया था।

06 भीमाशंकर ज्योतिर्लिग

भीमशंकर :- यह स्थान मुंबाई से 60मील दूर है। यहां कुंभकर्ण के पुत्र भीम का वध करने के लिये अवतरित हुए थे।

07 विश्वनाथ विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग

विश्वेश्वर :- विश्वेश्वर महादेव काशी में विराजमान हैं। प्रभू ने माँ पार्वती को बताया कि मनुष्यों के कल्याण के लिये उन्होंने इस जगह पर निवास किया है।

08 त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

त्र्यम्बकेश्वर :- महाराष्ट्र में नासिक रोड स्टेशन से 25किमी की दूरी पर स्थित हैं। गौतम ऋषी और उनकी पत्नी अहिल्या की तपस्या से प्रसन्न हो कर यहां विराजमान हुए थे।

09 वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

वैद्यनाथेश्वर :- बिहार में वैद्यनाथधाम में विराजमान हैं। रावण को लंका ले जाकर स्थापित करने के लिए शिवजी ने एक शिवलिंग दिया था, जिससे वह अजेय हो जाता। पर विष्णुजी ने उसको अजेय ना होने देने के कारण शिवलिंग को यहां स्थापित करवा लिया था।

10 नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

नागेश्वर :- द्वारका के समीप दारुकावन मेँ स्थित हैं। यहां शिवजी तथा पार्वतीजी की पूजा नागेश्वर और नागेश्वारी के रूप में होती है।

11 रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

रामेश्वर :- दक्षिण भारत के समुंद्र तट पर पाम्बन स्थान के निकट स्थित है। लंकाविजय के समय भगवान राम ने इनकी स्थापना की थी।

12 घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

घुश्मेश्वर :- महाराष्ट्र के मनमाड से 100किमी दूर दौलताबाद स्टेशन से 20किमी की दूरी पर वेरुल गांव में स्थित हैं। घुश्मा नाम की अपनी भक्त की पूजा से प्रसन्न हो कर यहां प्रगट हुए और घुश्मेश्वर कहलाये।

Thursday, November 4, 2010

Wednesday, November 3, 2010

धनतेरस की असीम शुभ कामनाएं

आप सभी श्रद्धालुजनों को धनतेरस के पावन अवसर पर अनंत शुभ कामनाएं । भगवान धन्वतरी जी से प्रार्थना है-आप सभी को अच्छा स्वास्थ्य-अरोग्यपूर्ण जीवन , दीर्घायु प्रदान करें । माँ लक्ष्मी आप सभी के जीवन में सुख-शांति,उन्नति , यश-वैभव ,  दया-करुणा , परोपकार की भावना का संचार करें । शुभ धनतेरस ।

Tuesday, November 2, 2010

धनतेरस पूजन विधान - महत्व

भगवान धनवंतरी जी 

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से  भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरी आयुर्वेद के जनक  माने जाते हैं । इन्होंने देवताओं को अमृतपान कराकर अमर कर दिया था। वर्तमान संदर्भ में भी आयु और स्वस्थता की कामना से धनतेरस पर भगवान धन्वंतरी का पूजन किया जाता है। इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन भी किया जाता है। आज से ही तीन दिन तक चलने वाला गो-त्रिरात्र व्रत भी शुरू होता है।
धनतेरस के दिन धन्वंतरी जी का पूजन करें।
नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें।
सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर घर , दुकान को सजायें। अपने घर के साथ-साथ मंदिर, गौशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएँ।
शक्ति अनुसार सोना - चाँदी , ताँबे, पीतल, के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करते हैं। हल  से जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें।कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआँ, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएँ।
श्रीयंत्र
धनतेरस पूजन :-
कुबेर पूजन - शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गादी बिछाएँ अथवा पुरानी गादी को ही साफ कर पुनः स्थापित करें। सायंकाल पश्चात तेरह दीपक प्रज्वलित कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करते हैं।
कुबेर का ध्यान : -  भगवान कुबेर पर फूल चढ़ाएँ और ध्यान करें -श्रेष्ठ विमान पर विराजमान, गरुड़मणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा एवं वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृत तुंदिल शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र निधीश्वर कुबेर का मैं ध्यान करता हूँ।
इसके पश्चात निम्न मंत्र द्वारा चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें -
'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।'
इसके पश्चात कपूर से आरती उतारकर मंत्र पुष्पांजलि अर्पित करें।
यम दीपदान :- तेरस के सायंकाल किसी पात्र में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें।
पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके यम से निम्न प्रार्थना करें-'मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह।
    त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम।।
अब उन दीपकों से यम की प्रसन्नतार्थ सार्वजनिक स्थलों को प्रकाशित करें।
 इसी प्रकार एक अखंड दीपक घर के प्रमुख द्वार की देहरी पर किसी प्रकार का अन्न (साबूत गेहूँ या चावल आदि) बिछाकर उस पर रखें। (मान्यता है कि इस प्रकार दीपदान करने से यम देवता के पाश और नरक से मुक्ति मिलती है।)
यमराज पूजन : - इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखें।
रात को घर की स्त्रियाँ दीपक में तेल डालकर चार बत्तियाँ जलाएँ।

Saturday, October 30, 2010

दीपावली

 इस वर्ष दीपावली 05(पाँच) अक्टूबर , कार्तिक अमावस्या को मनाई जायेगी ।
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधि से बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपों की पंक्ति । भारत वर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए । कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं। दीवाली अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है - "असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय।" दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन,सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।
दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी मे आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा १६१९ में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने ४० गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।

दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं। दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे , मिठाइयाँ ,खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं । स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ, आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।

Tuesday, September 21, 2010

श्रद्धा से ही है "श्राद्ध"

मनुष्य तीन ऋणों को लेकर जन्म लेता है - देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। देवार्चन से देव ऋण, अध्ययन से ऋषि ऋण एवं पुत्र की उत्पत्ति के बाद  एवम श्राद्ध कर्म से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। श्रद्धा से ही श्राद्ध है । श्रद्धापूर्वक पितरों के लिए ब्राह्मण भोजन, तिल, जल आदि से तर्पण एवं दान करने से पितृ ऋण से मुक्ति और पितरों को प्रसन्नता मिलती है और हमें उनका आशीर्वाद मिलता है , जिससे हम सपरिवार सुख-समृद्धि प्राप्त करते हैं । अपने पितरों को प्रसन्न कर हम ॠण मुक्त तो होते ही हैं साथ ही इह लोक और परलोक भी सुधार सकते हैं

पितृपक्ष और श्राद्ध

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की रश्मि तथा रश्मि के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। श्राद्ध की भूलभूत परिभाषा यह है कि प्रेत और पितर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। सपिण्डन के बाद वह पित्तरों में सम्मिलित हो जाता है।
पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से रेतस्‌ का अंश लेकर वह चंद्रलोक में अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र ऊपर की ओर होने लगता है। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से उसी रश्मि के साथ रवाना हो जाता है। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है।
शास्त्रों का निर्देश है कि माता-पिता आदि के निमित्त उनके नाम और गोत्र का उच्चारण कर मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि अर्पित किया जाता है, वह उनको प्राप्त हो जाता है। यदि अपने कर्मों के अनुसार उनको देव योनि प्राप्त होती है तो वह अमृत रूप में उनको प्राप्त होता है।
उन्हें गन्धर्व लोक प्राप्त होने पर भोग्य रूप में, पशु योनि में तृण रूप में, सर्प योनि में वायु रूप में, यक्ष रूप में पेय रूप में, दानव योनि में मांस के रूप में, प्रेत योनि में रुधिर के रूप में और मनुष्य योनि में अन्न आदि के रूप में उपलब्ध होता है।
जब पित्तर यह सुनते हैं कि श्राद्धकाल उपस्थित हो गया है तो वे एक-दूसरे का स्मरण करते हुए मनोनय रूप से श्राद्धस्थल पर उपस्थित हो जाते हैं और ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में भोजन करते हैं। यह भी कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में आते हैं तब पित्तर अपने पुत्र-पौत्रों के यहाँ आते हैं।
विशेषतः आश्विन-अमावस्या के दिन वे दरवाजे पर आकर बैठ जाते हैं। यदि उस दिन उनका श्राद्ध नहीं किया जाता तब वे श्राप देकर लौट जाते हैं। अतः उस दिन पत्र-पुष्प-फल और जल-तर्पण से यथाशक्ति उनको तृप्त करना चाहिए। श्राद्ध  से विमुख नहीं होना चाहिए ।