Sunday, July 25, 2010

शिव की कृपा बरसाने आया सावन

शिव की कृपा बरसाने आया सावन । शिव परम तत्त्‍‌व हैं और उन्हें शक्ति प्रदान करने वाली जगतजननी मां जगदम्बा परमेश्वरी। जब जीवात्मा में शिव तत्त्‍‌व का प्रवेश होता है, तभी जीव शक्ति को समझ पाता है। शिव और शक्ति के इसी रहस्य को जानने का महीना है सावन। भारतीय परंपरा में सावन के कई रूप हैं, लेकिन यहां हम देवभूमि में प्रचलित सावन के रहस्यों को ही उजागर करेंगे। संवत्सरीय गणना के अनुसार देवभूमि में सावन की शुरुआत कर्क यानी हरियाली संक्रांति से होती है। यह चातुर्मास का पहला महीना भी है। कहते हैं कि चातुर्मास में श्रीहरि राजा बलि को दिए गए वचन के अनुसार पाताल में विश्राम करते हैं। इसलिए इस अवधि सिर्फ भगवान आशुतोष की ही पूजा होती है। यूं तो शिव और सावन एक-दूसरे के पर्याय हैं, लेकिन शिव को सोमवार अत्यंत प्रिय है, जो आज पड़ रहा है। इस दौरान हजारों शिवभक्त शिवलिंग का जलाभिषेक करेंगे, जिसकी तैयारियां द्रोणनगरी के प्रमुख शिवालयों में कर ली गई हैं। शिव को जानने के लिए उनकी प्रकृति को समझना आवश्यक है। समस्त प्राणियों के एकमात्र आश्रयदाता शिव ही हैं। वे रुद्र भी कहलाते हैं, जिनके समीप पहुंचकर सारे दु:ख खत्म हो जाते हैं। शिव का एक नाम हर भी है, वे सबके दु:खों को हरते हैं। शिव नीलकंठ हैं, जो विश्व के कल्याण के लिए विष का पान कर लेते हैं। वे कर्पूर गौरं हैं, मतलब सारे सद्गुण उन्हीं से प्रकट होते हैं। उनके गले में सर्पो की माला सुशोभित है, जो यह दर्शाती है कि अपने जीवन में कष्टों को भी गले से लगाए रखो। कानों में बिच्छू और बर्र के कुंडल, यानी कटु शब्दों को सहने की क्षमता। इसी तरह मुंडों की माला और भस्म लेपन जीव की अंतिम अवस्था का द्योतक है। शिव प्रलय के देवता कहे गए हैं। इस दृष्टि से वे तमोगुण के अधिष्ठाता हुए, लेकिन पुराणों में विष्णु और शिव को अभिन्न माना गया है। इसीलिए विष्णु का वर्ण शिव में दृष्टिगोचर होता है, जबकि शिव की नीलिमा विष्णु में। शिव शांत हैं और रुद्र भी। वे श्रीराम के आराध्य हैं तो रावण ने भी अजेय शक्ति व गुह्य विद्याएं उन्हीं से प्राप्त कीं। शिव पूजन की विधि व्रत धारण कर पहले प्रहर में स्नान करके पशुपतये नम: का उच्चारण करते हुए स्वच्छ आसन पर बैठकर पूरब या उत्तर की ओर मुख कर संकल्प करें और कहें - मैं शिव की संतुष्टि हेतु व्रत रखकर शिवपूजन कर रहा हूं। शिवलिंग पर केवल पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर व गंगाजल), बेलपत्र, कनेर श्वेतार्क (सफेद आखा) व धतूरे के फूल, कमलगट्टा व नीलकमल चढ़ाकर पूजन करना चाहिए। शिवभक्त को रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए। दिव्य पांच वस्तुओं से मिश्रित पंचामृत या गंगाजल से शिवलिंग को स्नान कराते समय ॐ नम: शिवाय का जाप करते रहें। पंचामृत की अलग-अलग दिव्य वस्तुओं से शिवलिंग को स्नान कराना हो तो इस तरह मंत्रोच्चार करें: ॐ ईशानाय नम:, ॐ अघोराय नम:, ॐ वासुदेवाय नम:, ॐ सद्योजाताय नम:, ॐ तत्पुरुषाय नम:। ऐसे होगी सर्वकार्य सिद्धि सावन के महीने में किसी भी कार्यसिद्धि हेतु पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का शिव मंदिर में बैठकर नित्य जप करते रहें और 100 माला जप कर चुकें तब ॐ शिवाय स्वाहा कहकर हवन करना चाहिए। राहुकाल में न करें जलाभिषेक यूं तो जलाभिषेक किसी भी वक्त करने की कोई मनाही नहीं है, लेकिन पंचांगीय दृष्टि से राहुकाल को इसके लिए निषेध माना गया है। आज राहुकाल प्रात: 7.30 से 9.00 बजे तक रहेगा, जबकि गुलीक काल (शुभ समय) दोपहर 1.30 से 3.00 बजे तक है। एक बात और। प्रतिदिन 11.37 से 12.24 बजे तक अभिजित नक्षत्र रहता है। इस दौरान सभी ग्रह-नक्षत्र निस्तेज हो जाते हैं। इस अवधि में भी जलाभिषेक करना श्रेष्ठ है। वर्जित हैं अभक्ष्य पदार्थ वैसे तो अभक्ष्य (तामसी वृत्ति वाले) पदार्थो, यानी मांस-मदिरा आदि का सेवन सर्वकालिक वर्जित है, लेकिन सावन के महीने तो इनके बारे में सोचना भी पाप माना गया है। इसके अलावा सरसों के तेल को भी निषेध किया गया है। इसलिए सात्विक रहकर ही शिव पूजन करना चाहिए।