Monday, August 2, 2010

पितृ दोष से मुक्ति के लिए नाग पंचमी पर जरूर करें पूजा

इस वर्ष नाग पंचमी पर्व 14 अगस्त शनिवार को, परंपरागत तरीके से मनाया जाएगा। इस दिन घरों में प्रतीक रूप से नाग पूजा की जाएगी। मान्यताओं के अनुसार पितृ दोष से मुक्ति के लिए इस दिन उनकी पूजा का विधान किया गया है । नागपंचमी पर नाग की पूजा प्रत्यक्ष मूर्ति या चित्रों के रूप में की जाती है। इसी दिन सर्पो के प्रतीक रूप को दूध से स्नान करा कर उनकी पूजा करने का विधान है । दूध पिलाने से, वासुकी कुंड में स्नान करने, निज गृह के द्वार में दोनों और गोबर के सर्प बनाकर उनका दही, दु़र्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, मोदक और मालपुओं आदि से पूजा करने से घर में सर्पो का भय नहीं होता। भगवान विष्णु की शैया "अनन्त" नामक नागराज की है। धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि - महाभारत में कृष्ण और अजरुन ने भी मणिनाग की पूजा की। बौद्ध व जैन धर्म के अनुसार मुचलिंद नाग ने फन फैलाकर भगवान बुद्ध और भगवान पाश्र्वनाथ की भी तपस्या के दौरान धूप व हवा से रक्षा की थी। वेद-पुराणों के अनुसार नागों की उत्पति महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रु से हुई, इनका निवास स्थान पाताल लोक है।
नाग पंचमी पर्व पर शिव आराधना करें -
नाग पंचमी के दिन नाग की पूजा के साथ-साथ नागों के देवता देवाधिदेव महादेव की भी पूजा करना चाहिए। पंडितों ने बताया कि काल सर्प दोष निवारण के लिए नाग पंचमी के दिन नागनुमा अंगूठी बनवाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर उसे धारण करें। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में तांबे का सर्प बनवाकर उसकी पूजा करके शिवलिंग पर चढ़ाएं तथा इससे पूर्व एक रात उसे घर में ही रखें। नाग पंचमी को एक नाग-नागिन सपेरों से बंधन मुक्त कराने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है । इस मौके पर नागावली और नारायण नागावली का जप करें। "ऊं नम: शिवाय मंत्र" का जाप करें। राहु कवच या राहु स्त्रोत का पाठ करें। सत्यमुखी रुद्राक्ष गले में पहने तथा काल सर्प योग के साथ-साथ चंद्र राहु, चंद्र केतु, सूर्य-केतु, एक भी ग्रह योग हो तो केतु का रत्न लहसुनिया मध्यमा अंगुली में पहनें। इसके अलावा घर व कार्यालय में मोर पंख रखें व कालसर्प निदान के लिए शांति विधान करें। चंदन की लकड़ी पर चांदी का जोड़ा बनवाकर पूजा करके धारण करें।
शुभ भी होता है कालसर्प योग
गरुड़ पुराण के अनुसार नाग-पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है। राहु को सर्प का मुख और केतु को उसकी पूंछ माना जाता है। जब भी समस्त ग्रह इन दोनों ग्रहों के मध्य में आते हैं तो वह कालसर्प योग कहलाता है। कालसर्प योग शुभ व अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं। इसकी शुभता और अशुभता अन्य ग्रहों के योगों पर निर्भर करती है। जब भी कालसर्प योग में पंच महापुरुष योग, रुचक, भद्र, मालव्य व शश योग, गज केसरी, राज सम्मान योग महाधनपति योग बनें तो व्यक्ति उन्नति करता है।
जब कालसर्प योग के साथ अशुभ योग बने जैसे-ग्रहण, चाण्डाल, अशांरक, जड़त्व, नंदा, अंभोत्कम, कपर, क्रोध, पिशाच हो तो वह अनिष्टकारी होता है। ज्योतिषशास्त्र में 576 प्रकार के कालसर्प योग बताए गए हैं जिनमें लग्न से द्वादश स्थान तक मुख्यत: 12 प्रकार के सर्प योगों में अन्नत, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पदम, महापदम, तक्षक, कर्कोटक, शंखनाद, पातक, विशान्त तथा शेषनाग शामिल है। कालसर्प योग दोष निवारण के लिए नागपंचमी के दिन सर्प की पूजा करना सर्वाधिक अच्छा रहता है