Monday, July 12, 2010

मां महामाया की अद्‌भुत प्रतिमा रतनपुर में

बिलासपुर-अंबिकापुर राजमार्ग (छत्तीसगढ़) में बिलासपुर से 25 किलोमीटर पर ऐतिहासिक रत्नपुर (अब रतनपुर) की नगरी में स्थित दर्जनों छोटे मंदिर, स्तूप, किले तथा अन्य निर्माणों के पुरावशेष मानों अपनी कहानी बताने के लिये तत्पर हैं।

रतनपुर का इतिहास लगभग एक सहस्त्राब्द से भी पुराना है।
यह मान्यता है कि मां महामाया देवी का प्रथम अभिषेक एवं पूजा कलिंग के महाराज रत्न देव ने ईस्वी सन्‌ 1050 में इसी स्थान पर की थी, जब उन्होंने अपनी राजधानी तुमान को रत्नपुर स्थानांतरित किया था। रणनीतिक दॄष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण राजा रत्नदेव एवं उनके उत्तराधिकारियों ने रत्नपुर को राजधानी बनाकर यहां विभिन्न राजप्रासाद, किले तथा मंदिरों का निर्माण करवाया जिनके पुरावशेषों को आज भी देखा जा सकता है।
मंदिर के मुख्य परकोटे के अंदर, प्रसिद्ध कंठी देवल मंदिर तथा मुख्य ताल के सामने मां महामाया की अद्‌भुत प्रतिमा द्वय है: सामने की प्रतिमा मां महिषासुर मर्दिनी की तथा पीछे की मां सरस्वती की मानी जाती है। वैसे, सरसरी निगाह से देखने वाले को पीछे की प्रतिमा दिखाई नहीं देती। नवरात्र के समय न सिर्फ देश के कोने कोने से वरन देश के बाहर से लाखों की संख्या में श्रद्धालुगण मंदिर पहुंचकर मां के दर्शन कर तथा अर्चना कर अपने आपको धन्य समझते हैं।