Tuesday, September 21, 2010

श्रद्धा से ही है "श्राद्ध"

मनुष्य तीन ऋणों को लेकर जन्म लेता है - देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। देवार्चन से देव ऋण, अध्ययन से ऋषि ऋण एवं पुत्र की उत्पत्ति के बाद  एवम श्राद्ध कर्म से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। श्रद्धा से ही श्राद्ध है । श्रद्धापूर्वक पितरों के लिए ब्राह्मण भोजन, तिल, जल आदि से तर्पण एवं दान करने से पितृ ऋण से मुक्ति और पितरों को प्रसन्नता मिलती है और हमें उनका आशीर्वाद मिलता है , जिससे हम सपरिवार सुख-समृद्धि प्राप्त करते हैं । अपने पितरों को प्रसन्न कर हम ॠण मुक्त तो होते ही हैं साथ ही इह लोक और परलोक भी सुधार सकते हैं