Thursday, November 25, 2010

महामृत्युञ्जय-मन्त्र

ॐ त्र्यबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।उर्वारूकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। ॐ =   परमात्मा का नाम                                                                 
त्र्यंबकं = त्रि अंबकं = तीन नेत्रों वाले (भगवान शंकर) का
यजामहे = हम यजन(ध्यान, पूजन) करते हैं         
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् = जो सम्पूर्ण जगत का धारण, पोषण तथा संवर्धन करते हैं।
उर्वारूकमिव बन्धनात् = वे उर्वारूक के बन्धन से छूटने के समान(ककड़ी जिस प्रकार पक जाने पर बेल से स्वतः मुक्त हो जाती है॥
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् = मृत्यु से मोक्ष के लिये अमृत के द्वारा (वे हमारे समस्त कष्टों को हरें। )      हम तीन नेत्रों वाले (परम कृपालु) भगवान शंकर का यजन(ध्यान, पूजन) करते हैं। जिस प्रकार उर्वारूक (ककड़ी) पक जाने पर बेल से स्वतः मुक्त हो जाती है, उसे बन्धन से छूटने में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसी प्रकार हम भी संसार रूपी बेल (जिसमें दुःख-सुख रूपी फल लगते हैं, उस बेल) से (छूटने के लिये) कृपा-अमृत के द्वारा मृत्यु की अपेक्षा मोक्ष प्राप्त करें(समस्त दुःखों, कष्टों से छुटकारा पायें)।