1 | पुत्र प्राप्ति के लिये | प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान। सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान ॥ |
2 | क्लेश निवारण के लिये | हरन कठिन कलि कलुष कलेसू । महा मोह निसि दलन दिनेसू ॥ |
3 | महामारी से बचाव के लिये | जय रघुबंस बनज बन भानू । गहन दनुज कुल दहन कृसानू ॥ |
4 | धन प्राप्ति के लिये | जिमि सरिता सागर महुं जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं॥ तिमि सुख संपति बिनहि बोलाएं। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएं॥ |
5 | रोग शान्ति के लिये | दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहीं काहुहि व्यापा॥ |
6 | मानसिक परेशानी दूर करने के लिये | हनुमान अंगद रन गाजे। हॉक सुनत रजनीचर भाजे॥ |
7 | अकाल मृत्यु निवारण के लिये | नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट। लोचन निज पद जंत्रित जाहि प्रान केहि बाट॥ |
8 | संपत्ति के लिये | जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपत्ति नाना विधि पावहिं॥ |
9 | सुख के लिये | सुनहि विमुक्त बिरत अरु विषई। लहहि भगति गति सम्पति नई॥ |
10 | विद्या के लिये | गुरु गृह गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥ |
11 | मनोरथ के लिये | भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि॥ |
12 | मुकदमा जीतने के लिये | पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिवेक विग्यान निधाना॥ |
13 | विजय पाने के लिये | कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा॥ |
14 | प्रेम बढाने के लिये | सब नर करिहं परस्पर प्रीति। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥ |
15 | परीक्षा में सफल होने के लिये | जेहि पर कृपा करिह जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥ मोरि सुधारिहि सो सब भांती। जासु कृपा नहीं कृपा अघाती॥ |
16 | निंदा से बचने के लिये | राम कृपा अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी॥ |
17 | भूत बाधा निवारण के लिये | प्रनवऊं पवन कुमार खल बल पावक ग्यान घन। जासु हृदय अगार बसहि राम सर चाप धर॥ |
18 | खोई हुई वस्तु पाने के लिये | गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू॥ |
19 | विवाह के लिये | तब जनक पाई बसिष्ठ आयसु ब्याह साज संवारि कै। मांडवी श्रुत कीरति उरमिला कुंअरि लई हंकारि कै॥ |
20 | यात्रा में सफलता के लिये | प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कोसलपुर राजा॥ |
21 | विभिन्न कर्यों की सिद्धि के लिये | मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सो दसरथ अजिर बिहारि॥ मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥ जड चेतन जग जीव जत, सकल राममय जानि। बंदऊं सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥ सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहुं मुनिनाथ। हानि लाभ जीवन मरन, जस अपजस विधि हाथ॥ मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुवीर। अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु विषम भव भीर॥ सुनहि विमुक्त विरत अरु विषई। लहहि भगति गति संपति नई॥ सुर दुर्लभ सुख करि जग माही। अंतकाल रघुपति पुर जाहि ॥ |
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित धर्म , आध्यात्म , वास्तु शास्त्र एवम ज्योतिष पर आधारित मासिक पत्र।