Tuesday, November 23, 2010

द्वादस ज्योतिर्लिंग

पुराणों  में इस बात का उल्लेख है कि भगवान देवाधिदेव शंकर " शिवजी"  जहां-जहां खुद प्रगट  (स्वंभू)  हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को  अनादिकाल से ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।
सौराष्ट्रे सोमनाथ च श्री शैले मल्लिकार्जुनम, उज्जयिन्या महाकाल, मोंधारे परमेश्वरम, केदार हिमवत्पृष्ठे, डाकिन्या भीमशंकरम वारासास्था च विश्वेश, त्र्यम्बक गौतमी तीरे, वैद्यनाथ चिता भूमौनागेश द्वारका वने। सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवाल्ये। द्वादशेतानिनामानि प्रातरुत्थायय: पठेत, सर्व पापैर्विनिर्मुक्त: सर्व सिद्धि फल लभत्।