Thursday, November 25, 2010

देवी - कवच




  प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टकम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

  उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।

देवी कवच का अर्थ
 प्रथम शैलपुत्री हैं, द्वितीय ब्रह्मचारिणी हैं तृतीय देवी का स्वरूप चन्द्रघण्टा है, कूष्माण्डा चौथास्वरूप है, पाँचवीं स्कन्दमाता हैं, छठवीं कात्यायनी हैं, सातवीं कालरात्री हैं और महागौरी आठवीं हैं, नवमीं सिद्धिदात्री हैं – इस प्रकार देवी के नव स्वरूप कहे गये हैं (प्रसिद्ध हैं) ।
हे विप्रवर! देवी का यह कवच अत्यन्त गुह्य तथा सभी भूतों का उपकारक है, हे महामुनि इसे सुनें ।
देवी के ये नाम महात्मा ब्रह्मा(वेद) के द्वारा वर्णित हैं।
जो विषम परिस्थिति में दुर्गम स्थल पर या भय या अधिक दुःख से त्रस्त(आर्त) होकर देवी की शरण में आते हैं 
उनका रण में या संकट में किसी प्रकार का (कुछ भी) अशुभ नहीं होता है
न ही उनकी च्युति(अपद) होती है और न ही उन्हें किसी प्रकार का शोक, दुःख, भय प्राप्त होता है।
देवी के अन्य नाम
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।
जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा तथा स्वधा इन ग्यारह नामों से जो देवी प्रसिद्ध हैं, उन्हें नमस्कार है