Thursday, September 9, 2010

श्री गणेश चतुर्थी - गणेश महोत्सव का पर्व


देश में गणेश महोत्सव का पर्व शनिवार को शुरू हो रहा है। विध्न विनाशक भगवान गणेश जी की पूजा धूमधाम से की जायेगी। गाँव हो या शहर हर जगह श्रि गणेश स्थापना पूजा पंडाल बनाये गये हैं, जहां विधि विधान से गणपति की स्थापना एवम पूजा-आराधना की जायेगी । गणेश पूजन कर एक्कीस दुर्वाकुंर, मोदक लड्डू आदि का भोग लगाने का विधान है। गणेश चौथ पर चौक-चांदनी का विधान पहले गुरुकुलों में चलता था, जो अब समाप्त हो गया है। गणेश चतुर्थी में ग्यारह दिवसीय पूजन महोत्सव मनाया जाता है। बाल गंगाधर तिलक ने अठारवीं सदी में महाराष्ट्र के पुणे में गणेश महोत्सव की सामूहिक रूप से आयोजन की परंपरा शुरू की। जिसका लक्ष्य था देश में एकता स्थापित कर अंग्रजों से भारत को आजाद कराना । गणेश चतुर्थी का यह व्रत स्वतंत्रता संग्राम में अहम् भूमिका निभाया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भदवा चौथ का चंद्र रात्रि में नहीं देखा जाना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण ने भूल वश भदवा चौथ का चांद देख लिया था। इसी चांद देखने से भगवान कृष्ण पर समन्तक मणि चुराने का भी आरोप लगा था। श्री कृष्ण भगवान गणेश के पूजन से आरोप मुक्त सिद्ध हुए, तब से परंपरा कायम है।धर्मशास्त्रों के अनुसार कृष्ण व शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि के देवता भगवान गणेश हैं। इस तिथि को भगवान गणेश की आराधना करने से वे प्रसन्न होते हैं। लेकिन श्रावण के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी और भी विशेष है। इस दिन गणेश के साथ शंकर की पूजा भी करनी चाहिए। भगवान शंकर सभी देवों में पूजनीय हैं वहीं भगवान गणेश बुद्धि के देवता हैं। इस दिन भगवान शंकर को धतूरा व बिल्व पत्र तथा गणेश को दुर्वा व मोदक अर्पण से शिव व गणेश दोनों प्रसन्न होते हैं। 
श्रावण शुक्ल चतुर्थी दूर्वा गणपति का व्रत भी किया जाता है। व्रत के लिए सोने की प्रतिमा और सोने की दूर्वा बनाई जाती है। विधिपूर्वक तीन या पांच वर्ष तक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
शिवपुराणके अन्तर्गत रुद्रसंहिताके चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपालबना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजीउत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अ‌र्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्षपर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।