Monday, July 11, 2011

GURU PURNIMA गुरु पूर्णिमा



विक्रम सम्वत् 2068
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा , गुरू पूर्णिमा 15th July 2011

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं।
इस दिन गुरु पूजा का विधान है। भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस दिन महाभारत ग्रन्थ के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी का जन्मदिन है। उन्होंने चारो वेदों की रचना की थी , उन्हें आदि गुरु भी कहा जाता है। उनके सम्मान में गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।

शास्त्रों में 'गु' का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान बताया गया है और 'रु' का अर्थ उसका निरोधक बताया गया है । अंधकार को मिटा कर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। इस दिन सुबह घर की सफ़ाई स्नान आदि के बाद घर में किसी पवित्र स्थान पर सफेद वस्त्र फैलाकर उस पर बारह-बारह रेखाएँ बनाकर व्यास-पीठ बनाई जातीं हैं ।

'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से संकल्प लेते हैं । इसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ा जाता है । तदुपरांत ब्रह्माजी, व्यासजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम मंत्र से पूजा आवाहन आदि किया जाता है, फिर अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा-अर्चना कर उन्हें दक्षिणा दी जाती है ।

प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करता था, तो इसी दिन श्रद्धाभाव से प्रेरित होकर अपने गुरू का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति, सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतार्थ होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरु को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह-जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।

इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए क्योंकि गुरु का आशीर्वाद ही सबके लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है। इस दिन गुरुओं के आशिर्वाद प्राप्त करने, दर्शन -पूजन और सेवा करना अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. गुरु का आशिर्वाद लेने से शिष्य का आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त होता है ।    
गुरु और शिष्य का सम्बन्ध विषुद्ध रूप से आध्यात्मिक संबंध होता है, जिसमें दोनो की उम्र से कोई अन्तर नहीं पड़ता । गुरु और शिष्य का यह सम्बन्ध भक्ति और साधना की परिपक्वता और प्रौढ़ता पर आधारित होता है । शिष्य में सदा यह भावना काम करती है कि गुरु की कृपा से मेरा आध्यात्मिक विकास हो और कृपा के अक्षय भंडार गुरु में तो सदा यह कृपापूर्ण भाव रहता ही है कि मेरे इस शिष्य का आत्मिक कल्याण हो जाए ।
गुरुपूजा का दिन गुरु और शिष्य के मध्य ऐसे आध्यात्मिक संबंध को वन्दन करने का दिन है ।  यदि जगत्‌ में सद्‌गुरु ने शिष्यों को उनके मनुष्य होने का महत्व तथा उन्हें अपने अन्तस्थ आत्मा को अनुभव कराने का उपाय न बतलाया होता तो अपनी अन्तरात्मा के दर्शन ही नहीं होते ।

गुरु पूर्णिमा पर कृ्षि महत्व

गुरु पूर्णिमा यानि व्यास पूर्णिमा के दिन प्रकृ्ति की वायु परीक्षा की जाती है । यह परीक्षा माँनसून के दौरान कृ्षि और बागवानी कार्यो में महत्वपूर्ण सिद्ध होती है । व्यास पूर्णिमा के दिन को वायु परिक्षण के लिये शुभ माना जाता है ।  इस दिन मानसून परीक्षा कर आने वाली फसल का पूर्वानुमान लगाया जाता है । और अगले चार माहों में सूखा या बाढ आने की स्थिति का पूर्वानुमान लगाया जाता है ।  भारत प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान देश है. ऎसे में इस दिन की महत्वता और भी बढ जाती है ।

महर्षि व्यास जयन्ती मेला -

महर्षि व्यास ने महान ग्रन्थ महाभारत की रचना की थी (Maharshi Vyas wrote the great Scriptue "Mahabharata") महाशास्त्र महाभारत के अलावा उन्होने अट्ठारह पुराण, श्री मदभागवत, ब्रह्मासूत्र, मीमांसा आदि जैसे महान ग्रन्थों की रचना कि थी । महर्षि व्यास ज्योतिष के पितामह ऋषि पराशर के पुत्र थे । "श्रीमदभागवत गीता"  महाभारत का ही एक भाग है । इस दिन देश के कई भागों में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मेला लगता है।

गुरु पूर्णिमा महिमा

अपने गुणों व अपनी योग्यताके कारण गुरु को ईश्वर से भी उंचा स्थान दिया गया है । ईश्वर के अनेक रुपों से ऊपर बी गुरु को ही माना गया है । गुरु को ब्रह्मा कहा गया है । गुरु अपने शिष्य को नया जन्म देता है । गुरु ही साक्षात महादेव है, क्योकि वे अपने शिष्यों के सभी दोषों को माफ करते है ।
भारत में गुरुओं को न केवल आध्यात्मिक महत्व दिया गया है, बल्कि उनका महत्व धार्मिक और राजनैतिक विषयों में भी सदा से ही बना रहा है। यहां पर गुरुओं ने देश  को संकट के समय में अपने मार्गदर्शन से नया रास्ता दिखाया है। गुरु केवल एक शिक्षक ही नहीं है, अपितु वह व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक भी है।