Friday, July 8, 2011

ब्राह्मण




 ब्राह्मण को विद्वान, सभ्य और शिष्ट माना जाता है। विद्वान, शिक्षक, पंडित,

बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक तथा ज्ञान-अन्वेषी ब्राह्मणों की श्रेणी में आते थे |
यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो

ब्रह्म ( अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान ) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ

है - "ईश्वर ज्ञाता" | किन्तु हिन्दू समाज में ऐ तिहासिक स्थिति यह रही है कि

पारंपरिक पुजारी तथा पंडित ही ब्राह्मण होते हैं ।
किन्तु आजकल बहुत सारे ब्राह्मण धर्म-निरपेक्ष व्यवसाय करते हैं और उनकी

धार्मिक परंपराएं उनके जीवन से लुप्त होती जा रही हैं | यद्यपि भारतीय जनसंख्या

में ब्राह्मणों का प्रतिशत कम है, तथापि धर्म, संस्कॄति, कला, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान

तथा उद्यम के क्षेत्र में इनका योगदान अपरिमित है |

इतिहास

ब्राह्मण समाज का इतिहास प्राचीन भारत के वैदिक धर्म से आरंभ होता है|

"मनु-स्मॄति" के अनुसार आर्यवर्त वैदिक लोगों की भूमि है | ब्राह्मण व्यवहार का

मुख्य स्रोत वेद हैं | ब्राह्मणों के सभी सम्प्रदाय वेदों से प्रेरणा लेते हैं | पारंपरिक

तौर पर यह विश्वास है कि वेद अपौरुषेय ( किसी मानव/देवता ने नहीं लिखे )

तथा अनादि हैं, बल्कि अनादि सत्य का प्राकट्य है जिनकी वैधता शाश्वत है |

वेदों को श्रुति माना जाता है ( श्रवण हेतु , जो मौखिक परंपरा का द्योतक है ) |
धार्मिक व सांस्कॄतिक रीतियों एवम् व्यवहार में विवधताओं के कारण और

विभिन्न वैदिक विद्यालयों के उनके संबन्ध के चलते, ब्राह्मण समाज विभिन्न

उपजातियों में विभाजित है | सूत्र काल में, लगभग १००० ई.पू से २०० ई.पू

,वैदिक अंगीकरण के आधार पर, ब्राह्मण विभिन्न शाखाओं में बटने लगे |

प्रतिष्ठित विद्वानों के नेतॄत्व में, एक ही वेद की विभिन्न नामों की पृथक-पृथक

शाखाएं बनने लगीं | इन प्रतिष्ठित ऋषियों की शिक्षाओं को सूत्र कहा जाता है |

प्रत्येक वेद का अपना सूत्र है | सामाजिक, नैतिक तथा शास्त्रानुकूल नियमों वाले

सूत्रों को धर्म सूत्र कहते हैं , आनुष्ठानिक वालों को श्रौत सूत्र तथा घरेलू

विधिशास्त्रों की व्याख्या करने वालों को गॄह् सूत्र कहा जाता है | सूत्र सामान्यतया

पद्य या मिश्रित गद्य-पद्य में लिखे हुए हैं |
ब्राह्मण शास्त्रज्ञों में प्रमुख हैं अग्निरस , अपस्तम्भ , अत्रि , बॄहस्पति , बौधायन ,

दक्ष , गौतम , वत्स,हरित , कात्यायन , लिखित , मनु , पाराशर , समवर्त ,

शंख , शत्तप , ऊषानस , वशिष्ठ , विष्णु , व्यास , यज्ञवल्क्य तथा यम | ये

इक्कीस ऋषि स्मॄतियों के रचयिता थे | स्मॄतियां में सबसे प्राचीन हैं अपस्तम्भ ,

बौधायन , गौतम तथा वशिष्ठ |

ब्राह्मण निर्धारण - जन्म या कर्म से

ब्राह्मण का निर्धारण माता-पिता की जाती के आधार पे ही होने लगा है | वैदिक

शास्त्रों मैं साफ़ - साफ़ बताया है
जन्मना जायते शूद्रः
संस्कारात् भवेत् द्विजः |
वेद-पाठात् भवेत् विप्रः
ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः |
जन्म से मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज (ब्रह्मण), वेद के पठान-पाठन से विप्र और

जो ब्रह्म को जनता है वो ब्राह्मण कहलाता है |
ब्राह्मण का स्वभाव

शमोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च |
ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||
चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता तथा

ज्ञान-विज्ञान में विश्वास | वस्तुतः ब्राह्मण को जन्म से शूद्र कहा है । यहाँ ब्राह्मण

को क्रियासे बताया है । ब्रह्म का ज्ञान जरुरी है । केवल ब्राहमण के वहा पैदा होने

से ब्राह्मण नहीं होता ।
ब्राह्मण के कर्त्तव्य

निम्न श्लोकानुसार एक ब्राह्मण के छह कर्त्तव्य इस प्रकार हैं
अध्यापनम् अध्ययनम् यज्ञम् यज्ञानम् तथा | ,
दानम् प्रतिग्रहम् चैव ब्राह्मणानामकल्पयात ||
शिक्षण, अध्ययन, यज्ञ करना , यज्ञ कराना , दान लेना तथा दान देना ब्राह्मण के

छह कर्त्तव्य हैं |
ब्राह्मण का व्यवहार

ब्राह्मण हिन्दू धर्म के नियमों का पालन करते हैं जैसे वेदों का आज्ञापालन , यह

विश्वास कि मोक्ष तथा अन्तिम सत्य की प्राप्ति के अनेक माध्यम हैं , यह कि

ईश्वर एक है किन्तु उनके गुणगान तथा पूजन हेतु अनगिनत नाम तथा स्वरूप हैं

जिनका कारण है हमारे अनुभव, संस्कॄति तथा भाषाओं में विविधताए | ब्राह्मण

सर्वेजनासुखिनो भवन्तु ( सभी जन सुखी तथा समॄद्ध हों ) एवम् वसुधैव

कुटुम्बकम ( सारी वसुधा एक परिवार है ) में विश्वास रखते हैं | सामान्यत:

ब्राह्मण केवल शाकाहारी होते हैं (बंगाली, उडिया तथा कुछ अन्य ब्राह्मण तथा

कश्मीरी पन्डित इसके अपवाद हैं) |
दिनचर्या
हिन्दू ब्राह्मण अपनी धारणाओं से अधिक धर्माचरण को महत्व देते हैं | यह

धार्मिक पन्थों की विशेषता है | धर्माचरण में मुख्यतया है यज्ञ करना | दिनचर्या

इस प्रकार है - स्नान , सन्ध्यावन्दनम् , जप , उपासना , तथा अग्निहोत्र |

अन्तिम दो यज्ञ अब केवल कुछ ही परिवारों में होते हैं | ब्रह्मचारी अग्निहोत्र यज्ञ

के स्थान पर अग्निकार्यम् करते हैं | अन्य रीतियां हैं अमावस्य तर्पण तथा श्राद्ध

|
देखें : नित्य कर्म तथा काम्य कर्म
संस्कार

ब्राह्मण अपने जीवनकाल में सोलह प्रमुख संस्कार करते हैं | जन्म से पूर्व

गर्भधारण , पुन्सवन (गर्भ में नर बालक को ईश्वर को समर्पित करना ) ,

सिमन्तोणणयन ( गर्भिणी स्ज्ञी का केश-मुण्डन ) | बाल्यकाल में जातकर्म (

जन्मानुष्ठान ) , नामकरण , निष्क्रमण , अन्नप्रासन , चूडकर्ण , कर्णवेध | बालक

के शिक्षण-काल में विद्यारम्भ , उपनयन अर्थात यज्ञोपवीत् , वेदारम्भ , केशान्त

अथवा गोदान , तथा समवर्तनम् या स्नान ( शिक्षा-काल का अन्त ) | वयस्क

होने पर विवाह तथा मृत्यु पश्चात अन्त्येष्टि प्रमुख संस्कार हैं |
सम्प्रदाय

दक्षिण भारत में ब्राह्मणों के तीन सम्प्रदाय हैं - स्मर्त सम्प्रदाय , श्रीवैष्णव

सम्प्रदाय तथा माधव सम्प्रदाय |