Monday, August 8, 2011

ज्योतिष और वेद



वेद का छठा अंग ज्योतिष है , सूर्य-चंद्रमा ही पिता और माता है ।
वेदों के सर्वांगीण अनुशीलन के लिये शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष- इन ६ अंगों के ग्रन्थ हैं। प्रतिपदसूत्र, अनुपद, छन्दोभाषा (प्रातिशाख्य), धर्मशास्त्र, न्याय तथा वैशेषिक- ये ६ उपांग ग्रन्थ भी उपलब्ध है। आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद तथा स्थापत्यवेद- ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद कात्यायन ने बतलाये हैं।
विज्ञान जहां समाप्त होता है, वहां से ज्योतिष शुरू होता है, यह वेद सम्मत विज्ञान है। ज्योतिष लोगों को अंधविश्वास की ओर नहीं ले जाता, बल्कि लोगों को जागरूक करता है।

ज्योतिष समय का विज्ञान है, इसमें तिथि, वार, नक्षत्र, योग और कर्म इन पांच चीजों का अध्ययन कर भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी दी जाती है। यह किसी जाति या धर्म को नहीं मानता। वेद भगवान भी ज्योतिष के बिना नहीं चलते।

वेद के छः अंग हैं, जिसमें छठा अंग ज्योतिष है। हमने पूर्व जन्म में क्या किया और वर्तमान में क्या कर रहे हैं, इसके आधार पर भविष्य में क्या परिणाम हो सकते हैं, इसकी जानकारी ज्योतिष के द्वारा दी जाती है।

ग्रहों से ही सब कुछ संचालित होते हैं। इसी से ऋतुएं भी बनती हैं। सूर्य पृथ्वी से दूर गया तो ठंड का मौसम आ गया और पास आने पर गर्मी बढ़ गई।

सूर्य आत्मा के रूप में विराजमान हैं, परिवार में इसे पिता का स्थान प्राप्त है। इसी तरह चंद्रमा मन पर विराजमान रहता है, परिवार में इसे मां का दर्जा प्राप्त है। इसलिए जिस व्यक्ति ने मां-पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया समझो वह सूर्य और चंद्रमा का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया। मंगल शरीर की ऊर्जा है, शरीर में पर्याप्त ऊर्जा है तो आपकी सक्रियता दिखेगी। जिस व्यक्ति के मन में ईर्ष्या नहीं है समझिए, उसका बुध मजबूत है, उसे बुध का आर्शीवाद प्राप्त है। इसी तरह शुक्र परिवार में पत्नी की तरह और शरीर में शुक्राणु के रूप में मौजूद रहता है। जिस व्यक्ति का स्नायु तंत्र कमजोर है, नसें कमजोर हैं, स्पाईन का दर्द है समझो उसके ऊपर शनिदेव का प्रकोप है।