Sunday, March 27, 2011

नव संवत्सर - 2068 , 04 अप्रैल से



भारतीय संस्कृति के अनुसार वर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। देश में मास की गणना दो प्रकार से की होती है- अमावस्या से अमावस्या तथा पूर्णिमा से पूर्णिमा तक। चैत्र शुक्ल रामनवमी से वर्ष आरम्भ होता है, जिसमें एक वर्ष की अवधि को संवत, संवत्सर, परिवत्सर, इदावत्सर आदि नामों से अभिहित किया जाता है। ग्रन्थों में विभिन्न समय में चले संवत का उल्लेख वर्णित है, जिसमें युधिष्ठिर संवत, कलि संवत जिसमें कलि का प्रादुर्भाव हुआ। इसके बाद विक्रमी संवत का प्रारम्भ हुआ जो सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। इस दिन नवरात्र का प्रारम्भ, सृष्टि आरम्भ दिन, मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक, शकारि विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत का शुभारम्भ व आर्य समाज की स्थापना व झूले लाल का जन्म दिन हुआ।
हिन्दी मास में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्रि्वन, कार्तिक, मार्गशीष, पौष, माघ, फाल्गुन बारह महीनें है। फाल्गुन माह में होली के पश्चात चैत्र शुक्ल एकम् से नव वर्ष में क्रिया कलाप व्यवस्थित करने का क्रम तेजी से चल रह है। शास्त्रों में वर्णित है कि
ब्रहणों दितीय पराद्र्वे, श्वेतवाराह कल्पे वैवस्त
मनवन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे।
अर्थात ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध के श्वेतवाराहकल्प के वैवस्त मन्वन्तर के 28 वे कलियुग के प्रथम चतुर्थास भाग में यही हमारी परम्परा प्राप्त काल गणना एक कल्प है। एक कल्प में एक हजार बार सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग व्यतीत हुआ करते है, जिसमें एक बार के चार युगों की वर्ष संख्या 43 लाख 20 हजार है। मानव के जातीय इतिहास में एक कल्प को चौदह मन्वन्तरों में विभक्त किया जाता है। जानकारों के अनुसार अब तक छह मन्वन्तर बीत चुके है 28 वीं बार तीन युग बीत कर चौथा कलियुग चल रहा है। जिसके संवत 2067 में 5113 वर्ष बीत चुके है। सृष्टि आरम्भ से अब तक 195588510 वर्ष बीत चुके है। चार अप्रैल को सृष्टि संवत 1955885113 विक्रमी संवत 2068 का प्रारम्भ हो रहा है।
विडम्बना है कि भारतीय संवत को भुलाने का उपक्रम तेजी से चल रहा है। लोग विक्रमी संवत भूल कर पाश्चात्य ईसवी सन का दैनिक दिनचर्या क्रिया कलापों में रट्टा लगाया जाता है। सारे क्रिया कलाप भारतीय पद्धति से करने के बाद भी आधुनिकता में स्थिति को स्वीकारते नहीं। फिर भी चैत्र शुक्ल एकम् नवरात्र से प्रारम्भ होने वाले भारतीय नूतन संवत्सर के प्रारम्भ में एक दूसरे को बधाई देकर शक्ति आराधना के साथ मंगल की कामना करने वालों की बहुलता आज भी है। वे आज भी प्रेरणास्रोत्र नव संवत्सर पर संकल्प लेकर भारतीय जीवन पद्धति व संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं। वर्तमान में राष्ट्र के सभी कर्णधार इक्कीसवी सदी की बात करते है जो ईसा संवत से सोचते है, जबकि हमारे पूर्वज बावनवी शताब्दी के पहले से मौजूद है।