Wednesday, October 12, 2011

हिंदु धर्म में बताए गए वस्त्र धारण करने से क्या लाभ होता है ?



हिंदु धर्ममें बताए गए वस्त्र धारण करनेसे क्या लाभ होता है ?
हिंदु धर्म में स्त्री एवं पुरुष द्वारा धारण किए जाने वाले वस्त्रों की रचना देवताओं ने की है । इसीलिए ये वस्त्र शिव एवं शक्ति तत्त्व प्रकट करते हैं । स्त्रियों के वस्त्रों से अर्थात साडी से शक्ति तत्त्व जागृत होता है एवं पुरुषों के वस्त्रों से शिवतत्त्व जागृत होता है ।
सारणी -

    १. कपडे (वस्त्र) धारण करने का महत्त्व एवं लाभ
        १.१ शारीरिक दृष्टि से महत्त्व
        १.२ मनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्व
        १.३ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्त्व

१. कपडे (वस्त्र) धारण करनेका महत्त्व एवं लाभ
१.१ शारीरिक दृष्टि से महत्त्व

    वस्त्र पहनने से शीलरक्षण होता है, अर्थात लज्जा की रक्षा होती है; साथ ही ठंड, वायु, उष्णता, वर्षा आदि से भी देह का रक्षण होता है ।

१.२ मनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्व

    १. वस्त्रों से मनुष्य के स्वभाव एवं व्यक्तित्व का बोध होना : मनुष्य अपने स्वभाव के अनुरूप वस्त्र चुनता है । साधारणत: जो लोग सदैव व्यवस्थित एवं इस्त्री किए हुए वस्त्र पहनते हैं, वे अनुशासनप्रिय एवं परिपूर्ण स्वभाव के होते हैं । जो सदैव अनौपचारिक एवं सुखदायक वस्त्र पहनते हैं, वे मिलनसार एवं स्वच्छंद स्वभाव के होते हैं । जो लोग सदैव अस्त-व्यस्त एवं विचित्र वस्त्र पहनते हैं, वे स्वभाव से आलसी एवं असावधान होते हैं । संक्षेप में, वस्त्र मनुष्य के स्वभाव एवं व्यक्तित्व का परिचायक होते हैं । अतएव मनुष्य के लिए व्यावहारिक जीवन में विशिष्ट प्रसंग के लिए पूरक वस्त्र धारण करना आवश्यक है । उदा. नौकरी के साक्षात्कार (इंटरव्यू) के लिए जाते समय व्यवस्थित एवं इस्त्री किए परिधान में जाने से मनुष्य के अनुशासनप्रियता एवं नम्रता जैसे गुण प्रदर्शित होते हैं ।
    २. वस्त्रों द्वारा मनुष्य की मानसिकता प्रभावित होना :  नए वस्त्र पहनने पर हमें एक प्रकार की सुखद संवेदना होती है । दूसरी ओर, अनेक लोगों का यह अनुभव है कि, जब अत्यंत मलिन अथवा तंग वस्त्र पहनने पडते हैं, तब उनकी दुर्गंध अथवा उनके टांके चुभने से व्यक्ति अस्वस्थ हो जाता है । तात्पर्य यह कि, वस्त्र मनुष्य की मन:स्थिति को प्रभावित करते हैं । इंग्लैंड के 'आर्थर एंडरसन' नामक व्यावसायिक प्रतिष्ठान ने (कंपनीने) इस विषयपर शोध किया एवं अपने कर्मचारियों के परिधान में उचित परिवर्तन किए । परिणामस्वरूप कर्मचारी कार्य करते समय सहज रहने लगे, उनकी कार्यक्षमता में विलक्षण प्रगति हुई और उन्हें समाधान मिलने लगा ।

१.३ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्त्व

    १. वस्त्र धारण करना, अर्थात ब्रह्मपद पर आरूढ होने हेतु माया का (वस्त्रका) आलंबन करना : 'वस्त्र धारण करना, अर्थात ब्रह्मपद पर आरूढ होने हेतु माया में कार्य करनेके लिए माया का (वस्त्रका) आलंबन करना ।' - एक ज्ञानी
    २. धर्माचरण का प्रमाण देने वाली वेशभूषा, जीव को पाप से परावृत्त करने वाली :  'बाह्य विश्व को धर्माचरण का प्रमाण देने वाली (रेशमी) धोती, उपरना, तिलक, माला इत्यादि वेशभूषा जीव को पाप, अधर्म, मुक्त संभोग एवं मद्यपान से दूर रखती है, प्रतिबंधित करती है ।' - गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी
    ३. सात्त्विक वस्त्र धारण करने से वायुमंडल में विद्यमान सत्त्व तरंगों का जीव की ओर आकृष्ट होना : 'जीव द्वारा शरीर पर वस्त्र धारण करने से उनके सूक्ष्म-स्पर्श का घर्षण होता है । इससे वायुमंडल में विद्यमान सात्त्विक तरंगें वस्त्र की सहायता से जीव के सूक्ष्म-कोष एवं देह में आकृष्ट होती हैं ।' - एक ज्ञानी
    ४. हिंदु धर्ममें बताए गए वस्त्र धारण करने से उनसे शिव एवं शक्ति का तत्त्व जागृत होना : 'हिंदु धर्म में स्त्री एवं पुरुष द्वारा धारण किए जाने वाले वस्त्रों की रचना देवताओं ने की है । इसीलिए ये वस्त्र शिव एवं शक्ति तत्त्व प्रकट करते हैं । स्त्रियों के वस्त्रों से अर्थात साडी से शक्तितत्त्व जागृत होता है एवं पुरुषों के वस्त्रों से शिवतत्त्व जागृत होता है । शास्त्रानुसार वस्त्र धारण करने से हमें अपने वास्तविक स्वरूप का परिचय और अनुभव होता है । साथ ही हमारी आध्यात्मिक शक्ति का व्यय नहीं होता; अपितु उसकी बचत होती है । देवताओं द्वारा निर्मित वस्त्र पहनने से स्थूलदेह एवं मनोदेह के लिए आवश्यक शक्ति अपने आप मिलती है ।' -
    ५. हिंदु धर्म में बताए अनुसार वस्त्र धारण करने से ईश्वरीय चैतन्य एवं देवताओं के तत्त्व आकृष्ट होना : इसके दो उदाहरण आगे दिए हैं ।

        अ. कुर्ता एवं पजामा : 'कुर्ता एवं पजामा पहनने से शरीरके चारों ओर दीर्घवृत्ताकार (दीपकी ज्योतिसमान) कवच निर्मित होता है । इससे जीवके लिए वायुमंडल से ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण करना सुलभ होता है । साथ ही रज-तम पर विजय पाना भी सुलभ होताहै।
        आ. रेशमी धोती : कुर्ता एवं पजामाकी अपेक्षा रेशमी धोती अधिक सात्त्विक है । उसे धारण करने से जीव की देह के सर्व ओर सूक्ष्म गोलाकार कवच निर्मित होता है । इससे जीव के लिए देवता के तारक-मारक एवं सगुण निर्गुण, दोनों तत्त्व ग्रहण करना सुलभ हो जाता है ।'
                       - एक विद्वान

    ६. वस्त्रों द्वारा सात्त्विकता आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होना, यह वस्त्र के प्रकार एवं वस्त्र धारण करने की पद्धतियों पर निर्भर करना:

वस्त्र एवं उसे परिधान
करने की पध्दति
वस्त्र व्दारा सात्त्विकता ग्रहण
एवं प्रक्षेपित होने की मात्रा
१. 'नौ गज की साडी एवं धोती    सर्वाधिक
२. छ: गजकी साडी
     अ. बाएं कंधे पर पल्लू लेना
     आ. दाएं कंधे पर पल्लू लेना      
अधिक
अल्प
३. लुंगी    अल्प
४. सलवार-कुर्ता अथवा चुडीदार-कुर्ता
     अ. चुनरी दोनों कंधों पर लेना
     आ. चुनरी एक कंधे पर लेना    छ: गज की साडी से अल्प
अधिक
अल्प


    इससे हिंदु संस्कृति के परंपरागत परिधान, नौ-गज लंबी साडी एवं धोती का महत्त्व ज्ञात होता है । हिंदु संस्कृति चैतन्य मय संस्कृति कैसे है, इसका यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है ।
    ७. धार्मिक विधि के समय एवं तीज-त्यौहार पर हिंदु धर्म की परंपरा के अनुसार सात्त्विक वस्त्र धारण करने से सर्वाधिक ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण होना : 'हिंदु धर्मानुसार वर्ष भर में अनेक त्यौहार, व्रत एवं पर्वोत्सव आते हैं । साथ ही विविध पूजा एवं उपनयन, विवाह जैसी धार्मिक विधियां की जाती हैं । श्रीरामनवमी, जन्माष्टमी, हनुमान जयंती, संतों के प्रकटोत्सव आदि दिनों पर विशिष्ट देवी-देवताओं एवं संतों का तत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत रहता है । धार्मिक विधि के समय हम पूजास्थल पर देवताओं का आवाहन करते हैं, इसलिए देवता वहां उपस्थित रहते हैं । तात्पर्य यह है कि, उस विशिष्ट दिन ईश्वरीय चैतन्य अधिक मात्रा में कार्यरत रहता है । उस दिन हिंदु धर्मकी परंपरा के अनुसार सात्त्विक परिधान धारण करने से उस चैतन्य का हमें अधिक लाभ हो सकता है, उदा. स्त्रियोंके लिए छ: गज अथवा नौ गज लंबी सुनहरी तार (जरी) के छोरवाली साडी पहनना एवं पुरुषों के लिए धोती-उपरना अथवा कुर्ता-पजामा पहनना अधिक उचित है ।'
    .
    ८. त्यौहार, शुभ दिन एवं धार्मिक विधि के दिन नए अथवा रेशमी वस्त्र और विविध अलंकार धारण करने के लाभ:

            देवताओं के आशीर्वाद प्राप्त होना :  त्यौहार, शुभ दिन एवं धार्मिक विधि के दिन कभी-कभी देवता सूक्ष्मरूप से भूतल पर आते हैं । उस दिन वस्त्रालंकार से सुशोभित होना, उनका स्वागत करने के समान है । इससे देवता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं एवं हम देवताओं की तरंगें ग्रहण कर पाते हैं ।
            देवताओं की तत्त्वतरंगों का संपूर्ण वर्ष लाभ होना : त्यौहार के दिन नए अथवा रेशमी (अर्थात सात्त्विक) परिधान धारण करने से देवताओं के तत्त्व उन विशिष्ट वस्त्रों में अधिकाधिक आकृष्ट होते हैं, जिससे वस्त्र सात्त्विक बनते हैं । वस्त्रोंमें आकृष्ट देवताओं की तत्त्वतरंगें दीर्घकाल तक बनी रहती हैं । वस्त्र धारण करनेवाले को देवताओं की तत्त्वतरंगों का पूर्ण वर्ष तक लाभ मिलता है । (वस्त्र धोने के उपरांत भी देवताओं के तत्त्व उसमें आकृष्ट होने में सहायता होती है ।)
            देवताओं की तत्त्वतरंगों से देहों की शुद्धि होना :  देवताओं की तत्त्वतरंगें जीव की स्थूलदेह, मनोदेह, कारण देह एवं महाकारण देह की ओर अधिकाधिक आकृष्ट होती हैं । इससे उन देहों की शुद्धि होती है और वे सात्त्विक बनते हैं ।

    ९. वस्त्रों के कारण अनिष्ट शक्तियों से रक्षण होना

        अ. अपवित्र एवं नग्न रहने से अनिष्ट शक्तियों के कष्ट की आशंका होना
        शक्तिविषये न मुहूर्तमप्यप्रयत: स्यात् । नग्नो वा ।।
                     - आपस्तंबधर्मसूत्र प्रश्न १, सूत्र ५, काण्डिका १५, पटल ८, ९
        अर्थ : यथासंभव एक क्षण भी अपवित्र एवं नग्न नहीं रहना चाहिए ।
        अनिष्ट शक्तियों से बालकों की रक्षा हेतु, उन्हें वस्त्र में लपेटकर रखते हैं, नग्न नहीं रखते ।
        आ. हिंदु धर्म में बताए अनुसार वस्त्र धारण करने से अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होना: साडी की चुन्नट से शक्तिप्रवाह भूमि की दिशा में प्रक्षेपित होने पर पाताल की अनिष्ट शक्तियों से स्त्रियों की रक्षा होना :  साडी द्वारा प्रक्षेपित शक्तितत्त्व का वायुमंडल की अनिष्ट शक्तियों से अनायास ही युद्ध होता है । इससे व्यक्ति के मन एवं बुद्धि पर अनिष्ट शक्ति का प्रभाव घटता है । साडी की प्रत्येक चुन्नट से प्रक्षेपित शुभ्र प्रकाश का स्‍त्रोत तलवार जैसा होता है । चुन्नट से शक्तिप्रवाह भूमि की दिशा में प्रक्षेपित होता है, इसलिए पाताल की अनिष्ट शक्तियों से भी स्त्री की रक्षा होती है ।

        इ. त्यौहार एवं धार्मिक विधि के दिन नए अथवा रेशमी वस्त्र और अलंकार धारण करने से अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होना :  यज्ञ, उपनयन, विवाह, वास्तुशांति जैसी धार्मिक विधिके समय देवता और आसुरी शक्तियों का सूक्ष्म-युद्ध क्रमश:  ब्रह्मांड, वायुमंडल एवं वास्तु, इन स्थानों पर होता है । अत: त्यौहार मनाने वालों एवं धार्मिक विधि के लिए उपस्थित व्यक्तियों पर इस सूक्ष्म-युद्ध का परिणाम होता है । इससे उन्हें अनिष्ट शक्तियों द्वारा कष्ट होने की आशंका रहती है । विविध स्वर्णालंकार एवं नए अथवा रेशमी वस्त्र धारण करनेवाले व्यक्तिके सर्व ओर ईश्वरके सगुण-निर्गुण स्तर के चैतन्य का सुरक्षा वलय निर्मित होता है । इससे व्यक्ति की सात्त्विकता बढती है व अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों से उसकी रक्षा होती है ।