Monday, May 16, 2011

पीपल का पूजन देता है सुख, समृद्धि और वैभव

‘अश्वत्थ सर्वा वृक्षाणां देवषीणां च नारद।।’



 पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी विनष्ट नहीं होती।पीपल की सेवा-पूजा करने वाले सद्गति प्राप्त करते है।पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त औरपूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप है।पीपल की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढाने पर दरिद्रता,दु:ख,दुर्भाग्य का विनाश होता है।पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु व समृद्धि प्राप्त होती है|श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार को हनुमान की पूजा करने से बडे संकट से मुक्ति मिल जाती है|
शास्त्रों में वैशाख मास में भगवान मधुसूदन की विधिवत अर्चना मोक्षकारी बताई गई है। इस पुण्यकारी मास में भगवान मधुसूदन की अर्चना के साथ ही पीपल वृक्ष के पूजन का प्रावधान भी स्कन्दपुराण में वर्णित है। वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोणों से पीपल को शुभ फलदायी माना गया है।
शास्त्रों में वर्णित है कि पीपल की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व पत्तों में भगवान शिव का निवास होता है। स्कन्दपुराण के अनुसार पीपल के वृक्ष को काटना ब्रह्मा हत्या के समान पापकर्म है। यह सर्वविदित है कि पीपल भगवान मधुसूदन को बेहद प्रिय है। भगवान श्रीकृष्ण श्री भगवद्गीता में अर्जुन से कहते हैं,‘अश्वत्थ सर्वा वृक्षाणां देवषीणां च नारद।।’ अर्थात् हे अर्जुन, मैं समस्त वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं तथा देव ऋषियों में नारद मुनि हूं। वैशाख मास में पीपल को सांसारिक सुख, वैभव व मोक्ष प्राप्ति का सहज एवं सरल साधन के रूप में वर्णित किया गया है।
पद्मपुराण में एक स्थान पर स्वयं भगवान मधुसूदन का कथन है, ‘जो पीपल वृक्ष की सेवा करके वस्त्र दान करता है, वह समस्त पापों से छूटकर अंत में विष्णु भक्त हो जाता है। कार्तिक माहात्म्य में श्री सूत जी संतों से पीपल का माहात्म्य इस प्रकार वर्णित करते हैं, ‘भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि व्रत करते हुए यदि साधक किसी संकट में पड़कर व्रत का पालन न कर पाए व विष्णुजी का मंदिर पास न हो तो उसे पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर मेरा जाप करना चाहिए, उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।’ वायव्य संहिता में भी पीपल वृक्ष की महिमा का वर्णन करते हुए भगवान महादेव मां उमा से कहते हैं,‘पीपल वृक्ष के नीचे किये गये जप-पूजा का सहस्र गुना फल प्राप्त होता है।’ यह भी माना जाता है कि पीपल में अलक्ष्मी-दरिद्रा-जो कि देवी लक्ष्मी की बहन थी, का वास होता है। भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी से प्राप्त वरदान के कारण शनिवार को जो भक्त अलक्ष्मीजी के निवास अर्थात् पीपल वृक्ष की आराधना करते हैं, उन्हें निश्चित ही शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसी कारण शनेश्चरी अमावस्या व शनि प्रदोष होने पर पंचामृत से पीपल की अर्चना का प्रावधान शास्त्रों में वर्णित है। साधक को पीपल पूजन के पावन दिन पीपल की छाया में ‘ऊँ नम: वासुदेवाय नम:’ का  जाप करते हुए धूप-दीप व नैवेद्य से विधिवत पीपल का पूजन करना चाहिए। पीपल की विधिवत पूजा करने से साधक की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
पीपल पूजन से न केवल साधक, बल्कि उसके पितरों का भी कल्याण संभव है। स्कंदपुराण में यहां तक कहा गया है, कि जिस व्यक्ति के पुत्र न हो, वह पीपल को ही अपना पुत्र माने।