सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
सर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
और ...
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥
सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित धर्म , आध्यात्म , वास्तु शास्त्र एवम ज्योतिष पर आधारित मासिक पत्र।
Friday, December 31, 2010
Monday, December 27, 2010
Saturday, December 25, 2010
मंत्र शक्ति से लाभ पाएं
।। लक्ष्मी मन्त्र ।।
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।
।। स्वास्थ्य प्राप्ति मन्त्र ।।अच्युतानन्द गोविन्द
नामोच्चारण भेषजात ।
नश्यन्ति सकला रोगाः
सत्यंसत्यं वदाम्यहम् ।।
।। सफ़लता प्राप्ति मन्त्र ।।नामोच्चारण भेषजात ।
नश्यन्ति सकला रोगाः
सत्यंसत्यं वदाम्यहम् ।।
कृष्ण कृष्ण महायोगिन्
भक्तानाम भयंकर
गोविन्द परमानन्द सर्व मे वश्यमानय ।।
।। सम्पत्ति प्राप्ति मन्त्र ।।भक्तानाम भयंकर
गोविन्द परमानन्द सर्व मे वश्यमानय ।।
आयुर्देहि धनं देहि विद्यां देहि महेश्वरि ।
समस्तमखिलां देहि देहि मे परमेश्वरि ।।
।। दुख विनाशक मन्त्र ।।समस्तमखिलां देहि देहि मे परमेश्वरि ।।
1. ॐ अनन्ताय नमः ।
2. ॐ गोविन्दाय नमः ।
।। निर्विघ्न निद्रा मन्त्र ।।2. ॐ गोविन्दाय नमः ।
हे पद्मनाभं सुरेशं ।
हे पद्मनाभं सुरेशं ।
।। मुकदमें में विजय का मन्त्र ।।हे पद्मनाभं सुरेशं ।
हे चक्रधर !
हे चक्रपाणि !!
हे चक्रायुधधारी !!!
।। ग्रह पीड़ा-नक्षत्र दोष दूर करने का मन्त्र ।।हे चक्रपाणि !!
हे चक्रायुधधारी !!!
नारायणं सर्वकालं क्षुत प्रस्खलनादिषु ।
ग्रह नक्षत्र पीडाषु देव बाधाषु सर्वतः ।।
।। सन्तान सुख मन्त्र ।।ग्रह नक्षत्र पीडाषु देव बाधाषु सर्वतः ।।
हे जगन्नाथ ! हे जगदीश !!
हे जगत् पति !! हे जगदाधार !!
।। भय से मुक्ति मन्त्र ।।हे जगत् पति !! हे जगदाधार !!
हृषिकेश गोविन्द हरे मुरारी !
हे ! हृषिकेश गोविन्द हरे मुरारी !!
।। आपदाओं से त्राण पाने का मन्त्र ।।हे ! हृषिकेश गोविन्द हरे मुरारी !!
हे वासुदेव !
हे नृसिंह !
हे आपादा उद्धारक !
।। श्री राम के जप मन्त्र ।।हे नृसिंह !
हे आपादा उद्धारक !
1. ॐ राम ॐ राम ॐ राम ।
2. ह्रीं राम ह्रीं राम ।
3. श्रीं राम श्रीं राम ।
4. क्लीं राम क्लीं राम ।
5. फ़ट् राम फ़ट् ।
6. रामाय नमः ।
7. श्री रामचन्द्राय नमः ।
8. श्री राम शरणं मम् ।
9. ॐ रामाय हुँ फ़ट् स्वाहा ।
10. श्री राम जय राम जय जय राम ।
11. राम राम राम राम रामाय राम ।
।। स्नान मन्त्र ।।2. ह्रीं राम ह्रीं राम ।
3. श्रीं राम श्रीं राम ।
4. क्लीं राम क्लीं राम ।
5. फ़ट् राम फ़ट् ।
6. रामाय नमः ।
7. श्री रामचन्द्राय नमः ।
8. श्री राम शरणं मम् ।
9. ॐ रामाय हुँ फ़ट् स्वाहा ।
10. श्री राम जय राम जय जय राम ।
11. राम राम राम राम रामाय राम ।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ।।
।। सूर्य अर्घ्य मन्त्र ।।नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ।।
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते ।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।
।। आसन व शरीर शुद्धि मन्त्र ।।अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतो5पि वा ।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
।। चरणामृत मन्त्र ।।यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् ।
विष्णोः पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
।। चन्द्र अर्घ्य मन्त्र ।।विष्णोः पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
क्षीरोदार्णवसम्भूत अत्रिगोत्रसमुद् भव ।
गृहाणार्ध्यं शशांकेदं रोहिण्य सहितो मम ।।
।। सूर्य दर्शन मन्त्र ।।गृहाणार्ध्यं शशांकेदं रोहिण्य सहितो मम ।।
कनकवर्णमहातेजं रत्नमालाविभूषितम् ।
प्रातः काले रवि दर्शनं सर्व पाप विमोचनम् ।।
।। तिलक लगाने का मन्त्र ।।प्रातः काले रवि दर्शनं सर्व पाप विमोचनम् ।।
केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।
।। माला जपते समय का मन्त्र ।।पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।
अनिध्यं कुरु माले त्वं गृह् णामि दक्षिणे करें ।
जापकाले च सिद्धयर्थें प्रसीद मम सिद्धये ।।
।। शिखा बाँधने का मन्त्र ।।जापकाले च सिद्धयर्थें प्रसीद मम सिद्धये ।।
चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।।
।। तुलसी स्तुति मन्त्र ।।तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः ।
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये ।।
।। तुलसी तोड़ने का मन्त्र ।।नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये ।।
मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी ।
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमो5स्तुते ।।
पीपल मे जल देने का मन्त्र ।
कुलानामयुतं तेन तारितं नात्र संशयः।
यो5श्वत्थमूलमासिंचेत्तोयेन बहुना सदा ।।
।। पीपल पूजन ।।नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमो5स्तुते ।।
पीपल मे जल देने का मन्त्र ।
कुलानामयुतं तेन तारितं नात्र संशयः।
यो5श्वत्थमूलमासिंचेत्तोयेन बहुना सदा ।।
अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वैश्वर्यदायिने ।
अनन्तशिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः ।।
।। शंख पूजन मन्त्र ।।अनन्तशिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः ।।
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करें ।
निर्मितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमो5स्तुते ।।
।। प्रदक्षिणा मन्त्र ।।निर्मितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमो5स्तुते ।।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ।।
।। नवग्रह मन्त्र ।।तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ।।
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहु केतवः, सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ।।
।। अन्नपूर्णा मन्त्र ।।गुरुश्च शुक्रः शनिराहु केतवः, सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ।।
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्य भिक्षां देहि च पार्वति ।।
।। भोग लगाने का मन्त्र ।।ज्ञानवैराग्यसिद्ध्य भिक्षां देहि च पार्वति ।।
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।
गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।
।। अग्नि जिमाने का मन्त्र ।।गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।
ॐ भूपतये स्वाहा, ॐ भुवनप, ॐ भुवनपतये स्वाहा ।
ॐ भूतानां पतये स्वाहा ।।
कहकर तीन आहूतियाँ बने हुए भोजन को डालें । या
।। ॐ नमो नारायणाय ।।
कहकर नमक रहित अन्न को अग्नि में डालें ।
।। भोजन से पूर्व बोलने का मन्त्र ।।ॐ भूतानां पतये स्वाहा ।।
कहकर तीन आहूतियाँ बने हुए भोजन को डालें । या
।। ॐ नमो नारायणाय ।।
कहकर नमक रहित अन्न को अग्नि में डालें ।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।
।। भोजन के बाद का मन्त्र ।।ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।
अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः ।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः ।।
।। सायं दीप स्तुति मन्त्र ।।यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः ।।
सायं ज्योतिः परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं सन्ध्यादीप नमोऽस्तु ते ।।
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुखसम्पदाम् ।
मम बुद्धिप्रकाशं च दीपज्योतिर्नऽस्तु ते ।।
।। क्षमा प्रार्थना मन्त्र ।।दीपो हरतु मे पापं सन्ध्यादीप नमोऽस्तु ते ।।
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुखसम्पदाम् ।
मम बुद्धिप्रकाशं च दीपज्योतिर्नऽस्तु ते ।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
।। शयन का मन्त्र ।।यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
जले रक्षतु वाराहः स्थले रक्षतु वामनः ।
अटव्यां नारसिंहश्च सर्वतः पातु केशवः ।।
।। श्री गंगा जी की स्तुति ।।अटव्यां नारसिंहश्च सर्वतः पातु केशवः ।।
गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ।।
।। वेद स्तुति ।।त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ।।
नमः शम्भवे च मयोभवे च नमः शंकाराय च ।
मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ।।
।। काली स्तुति ।।मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ।।
काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोस्तुते । ।
सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोस्तुते । ।
पीपल और शनि
शनिवार को पीपल पर जल व तेल चढाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा लगाना अति शुभ होता है। धर्मशास्त्रों में वर्णन है कि पीपल पूजा केवल शनिवार को ही करनी चाहिए।
पुराणों में आई कथाओं के अनुसार ऎसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी से पूर्व उनकी बडी बहन, अलक्ष्मी (ज्येष्ठा या दरिद्रा) उत्पन्न हुई, तत्पश्चात् लक्ष्मीजी। लक्ष्मीजी ने श्रीविष्णु का वरण कर लिया। इससे ज्येष्ठा नाराज हो गई। तब श्रीविष्णु ने उन अलक्ष्मी को अपने प्रिय वृक्ष और वास स्थान पीपल के वृक्ष में रहने का ओदश दिया और कहा कि यहाँ तुम आराधना करो। मैं समय-समय पर तुमसे मिलने आता रहूँगा एवं लक्ष्मीजी ने भी कहा कि मैं प्रत्येक शनिवार तुमसे मिलने पीपल वृक्ष पर आया करूँगी।
शनिवार को श्रीविष्णु और लक्ष्मीजी पीपल वृक्ष के तने में निवास करते हैं। इसलिए शनिवार को पीपल वृक्ष की पूजा, दीपदान, जल व तेल चढाने और परिक्रमा लगाने से पुण्य की प्राप्त होती है और लक्ष्मी नारायण भगवान व शनिदेव की प्रसन्नता होती है जिससे कष्ट कम होते हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
किस चौपाई से क्या लाभ और फल मिलेगा, जानिए
1 | पुत्र प्राप्ति के लिये | प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान। सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान ॥ |
2 | क्लेश निवारण के लिये | हरन कठिन कलि कलुष कलेसू । महा मोह निसि दलन दिनेसू ॥ |
3 | महामारी से बचाव के लिये | जय रघुबंस बनज बन भानू । गहन दनुज कुल दहन कृसानू ॥ |
4 | धन प्राप्ति के लिये | जिमि सरिता सागर महुं जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं॥ तिमि सुख संपति बिनहि बोलाएं। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएं॥ |
5 | रोग शान्ति के लिये | दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहीं काहुहि व्यापा॥ |
6 | मानसिक परेशानी दूर करने के लिये | हनुमान अंगद रन गाजे। हॉक सुनत रजनीचर भाजे॥ |
7 | अकाल मृत्यु निवारण के लिये | नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट। लोचन निज पद जंत्रित जाहि प्रान केहि बाट॥ |
8 | संपत्ति के लिये | जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपत्ति नाना विधि पावहिं॥ |
9 | सुख के लिये | सुनहि विमुक्त बिरत अरु विषई। लहहि भगति गति सम्पति नई॥ |
10 | विद्या के लिये | गुरु गृह गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥ |
11 | मनोरथ के लिये | भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि॥ |
12 | मुकदमा जीतने के लिये | पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिवेक विग्यान निधाना॥ |
13 | विजय पाने के लिये | कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा॥ |
14 | प्रेम बढाने के लिये | सब नर करिहं परस्पर प्रीति। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥ |
15 | परीक्षा में सफल होने के लिये | जेहि पर कृपा करिह जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥ मोरि सुधारिहि सो सब भांती। जासु कृपा नहीं कृपा अघाती॥ |
16 | निंदा से बचने के लिये | राम कृपा अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी॥ |
17 | भूत बाधा निवारण के लिये | प्रनवऊं पवन कुमार खल बल पावक ग्यान घन। जासु हृदय अगार बसहि राम सर चाप धर॥ |
18 | खोई हुई वस्तु पाने के लिये | गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू॥ |
19 | विवाह के लिये | तब जनक पाई बसिष्ठ आयसु ब्याह साज संवारि कै। मांडवी श्रुत कीरति उरमिला कुंअरि लई हंकारि कै॥ |
20 | यात्रा में सफलता के लिये | प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कोसलपुर राजा॥ |
21 | विभिन्न कर्यों की सिद्धि के लिये | मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सो दसरथ अजिर बिहारि॥ मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥ जड चेतन जग जीव जत, सकल राममय जानि। बंदऊं सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥ सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहुं मुनिनाथ। हानि लाभ जीवन मरन, जस अपजस विधि हाथ॥ मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुवीर। अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु विषम भव भीर॥ सुनहि विमुक्त विरत अरु विषई। लहहि भगति गति संपति नई॥ सुर दुर्लभ सुख करि जग माही। अंतकाल रघुपति पुर जाहि ॥ |
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